भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे ग्रामीण पुलिस ने एक और मामला दर्ज किया है. एक महिला ने आरोप लगाया कि उसका मकान, दुकान और खाने का स्टॉल लूटा गया था. इसके बाद मामला दर्ज किया गया. पुणे पुलिस ने बताया कि 5 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है. इसके साथ ही अब तक ग्रामीण सहित प्रभावित लोगों के द्वारा 33 एफआईआर दर्ज कराए जा चुके हैं. शिक्रपुर थाने के दारोगा सदाशिव शेलर ने कहा कि आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत इनके खिलाफ केस दर्ज किया गया है.
भीमा कोरेगांव निवासी मंगल कांबले ने सोमवार को शिक्रपुर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई कि जब वह 'जय स्तंभ' देखने आए लोगों को चाय और नाश्ता दे रही थी, तब उसके खाने के स्टॉल को लूटा गया था.
जय स्तंभ पुणे-अहमदनगर रोड पर पेरने गांव में स्थित है. उसका पेशवा और ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं के बीच 1818 में हुई भीमा-कोरेगांव लड़ाई की याद में निर्माण किया गया था। इस इलाके में एक जनवरी को उस समय हिंसा भड़क उठी जब दलित समूहों ने लड़ाई के दौ सौ साल पूरे होने पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था.
कांबले ने अपनी शिकायत में कहा कि उस दिन सुबह करीब 11 बजे मोटरसाइकिल पर आए 15 से 20 लोग उसके स्टॉल पर पहुंचे और लूटपाट करने लगे. उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति ने डंडे से उन्हें मारा भी। इस घटना के बाद उनका परिवार बहुत डर गया और वे पुणे में हड़पसर रहने लगे।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुणे की एक अदालत में दाखिल आरोपपत्र उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने कहा कि वह आरोपियों के खिलाफ 'आरोपों' को देखना चाहती है.
पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को पुणे की विशेष अदालत में राज्य पुलिस द्वारा दाखिल आरोपपत्र आठ दिसंबर तक उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया. पीठ बंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने मामले में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 90 दिन की समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया था.
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पीठ ने अब अगली सुनवाई के लिए 11 दिसंबर की तारीख तय की है. इससे पहले शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी. बंबई उच्च न्यायालय ने हाल ही में निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें पुलिस को आरोपियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट दायर करने के लिये अतिरिक्त समय दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस द्वारा भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए पांच कार्यकर्ताओं के मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था और उनकी गिरफ्तारी के मामले में एसआईटी की नियुक्ति से इनकार कर दिया था.
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पुणे पुलिस ने जून में माओवादियों के साथ कथित संपर्कों को लेकर वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया था.
Source : News Nation Bureau