महाराष्ट्र सरकार को तगड़ा झटका देते हुए पुणे सत्र न्यायालय ने प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को रिहा करने के आदेश दिया. शनिवार सुबह पुणे पुलिस ने आनंद को मुंबई से गिरफ्तार किया था. अदालत ने आदेश दिया कि आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी न केवल अवैध है बल्कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है. शीर्ष अदालत ने 11 फरवरी तक प्रोफेसर को गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की थीइससे पहले शुक्रवार को पुणे सेशंस कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, कार्यकर्ता तेलतुंबड़े को 11 फरवरी तक अंतरिम सुरक्षा प्रदान की गई है. इस दौरान प्रोफेसर आनंद चाहे तो अग्रिम जमानत के लिए संबंधित अथॉरिटी के पास जा सकते हैं. पुणे सेशन कोर्ट के रिहाई के आदेश पर आनंद ने कहा, 'मैं कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं. लेकिन जो पुलिस ने किया, गिरफ्तारी और ड्रामा वह निंदनीय है.'
Anand Teltumbde, an accused in Bhima Koregaon case, after Pune Sessions Court ordered his release: I welcome the decision. But what police has done, the arrest and all the drama, is objectionable. pic.twitter.com/uT0Su4WUe9
— ANI (@ANI) February 2, 2019
अदालत ने आदेश दिया कि आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी न केवल अवैध है बल्कि यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना है. शीर्ष अदालत ने 11 फरवरी तक प्रोफेसर को गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की थी. यह पूछने पर कि मुंबई से तड़के अभियान चलाकर तेलतुंबडे को गिरफ्तार करने की क्या जल्दबाजी थी, जिस पर पुणे के संयुक्त पुलिस आयुक्त शिवाजीराव बोडके ने कहा, 'प्रक्रिया के मुताबिक ऐसा किया गया.'
आनंद को प्रतिबंधित 'कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया' (माओवादी) और साथ ही एलगार परिषद के साथ संबंध रखने का आरोप है, जिसने कथित तौर पर पुणे में कोरेगांव-भीमा में एक जनवरी, 2018 के जातीय दंगों और हिंसा को भड़काया था.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा के बावजूद पुणे पुलिस ने उन्हे गिरफ्तार किया था, जिसे कोर्ट ने गैरकानूनी बताते हुए उन्हे रिहा करने के आदेश दिए. गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर आनंद को तड़के ही मुंबई एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया. अभी उन्हें मुंबई के विले पार्ले थाने में रखा गया था. पुणे पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर 2017 को आयोजित किए गए एलगार परिषद कार्यक्रम में माओवादियों ने समर्थन किया था और उस कार्यक्रम में उकसाने वाले भाषण दिए गए थे जिससे अगले दिन वहां हिंसा हुई थी.
पिछले साल 28 अगस्त को देशभर में कई जगहों पर छापे मारे थे और माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं कवि वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था. इसी सिलसिले में मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी और आनंद तेलतुंबडे समेत कई अन्य के खिलाफ भी छापे मारे गए थे.
क्या है मामला ?
पिछले साल 31 दिसंबर को गिरफ्तार लोगों ने पुणे के शनिवारवाड़ा में एलगार परिषद आयोजित किया था. यह परिषद ब्रिटिश सेना और पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर आयोजित की गई थी. इस आयोजन को गुजरात के दलित नेता व विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद, छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी और भीम सेना के अध्यक्ष विनय रतन सिंह ने संबोधित किया था. इसके एक दिन बाद (एक जनवरी को) कोरेगांव-भीमा में जातीय दंगे भड़के थे.