बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में आशातीत जीत का श्रेय 'सबका साथ सबका विकास' को दिया था. खासकर उत्तर प्रदेश के संदर्भ में जोर-शोर से कहा गया कि मतदाताओं ने जातिगत राजनीति को नकार विकास को प्राथमिकता दी है. यह अलग बात है कि बीजेपी बेहद दबे-छिपे अंदाज में जाति की राजनीति कर रही है. इसका उदाहरण आधा दर्जन राज्यों में बदले गए राज्यपाल हैं. बीजेपी ने इनके सहारे पिछड़ा कार्ड ही खेला है. साथ ही संकेत भी दे दिया है कि आने वाले समय में राजनीति का रूप-स्वरूप क्या होने वाला है. गौर करने वाली बात यह है कि इस वक्त यूपी से आठ चेहरे राज्यपाल पद को सुशोभित कर रहे हैं.
अति पिछड़ी जाति के हैं फागू चौहान
बदले गए राज्यपालों के नाम और उनकी पृष्ठभूमि समझते ही बीजेपी के इस जातिगत कार्ड का खुलासा हो जाता है. इस बार बदले गए राज्यपालों की नियुक्तियों में बीजेपी ने पिछड़ा और अति पिछड़ा दांव चल दिया है. इनमें सबसे ऊपर नाम आता है फागू चौहान का, जिन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया है. फागू चौहान अति पिछड़ी जाति लोनिया से हैं और घोसी से विधायक थे. आजमगढ़, गाजीपुर, देवरिया, बलिया और जौनपुर से वाराणसी तक लोनिया की खासी तादाद है. बिहार में भी इनका प्रभाव माना जाता है. अब जब अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो बिहार में अति पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को साधने के लिए फागू से बेहतर दांव क्या हो सकता था.
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आनंदी बेन पटेल यूपी में कुर्मी वोट बैंक की काट
अब बात करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की करीबी आनंदी बेन पटेल की. हाल तक मध्य प्रदेश की राज्यपाल रहीं आनंदी बेन को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है. इनके जरिये बीजेपी उत्तर प्रदेश में कुर्मी वोट बैंक को साध रही है. पिछड़ी जाति से संबंध रखने वाली आनंदी बेन को यूपी में लाना सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने जैसा है. फिर पिछड़ी जातियों की झंडाबरदार बसपा को भी इसी दांव से चित करने की फिराक में है बीजेपी. छत्तीसगढ़ से सांसद और कुर्मी समाज का एक बड़ा चेहरा रमेश बैंस को बीजेपी ने त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया है. प. बंगाल के राज्यपाल बनाए गए जगदीप धनखड़ राजस्थान के जाटों में अच्छी दखल रखते हैं. बंगाल की जिम्मेदारी सौंप कर बीजेपी ममता बनर्जी के लिए संवैधानिक काट कर रही है.
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यूपी के ब्राह्मण चेहरे बनाए गए राज्यपाल
अगर बीजेपी की जातिगत राजनीति को देखें तो लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी ने पिछड़े नेताओं को साध कर सपा-बसपा गठबंधन को बेअसर किया है. चूंकि यूपी में ब्राह्मण मतदाता भी बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं, तो उन्हें साधने के लिए प्रदेश के नेताओं को विभिन्न राज्यों में राज्यपाल बनाया गया. फागू चौहान के अलावा अभी तक देश के सात राजभवनों में उप्र के निवासी हैं. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राजस्थान, लालजी टंडन अभी तक बिहार और अब मध्य प्रदेश, सत्यपाल मलिक जम्मू एवं कश्मीर, बेबी रानी मौर्य उत्तराखंड और बीडी मिश्रा अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल हैं. केशरी नाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं. उनका कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है. हाल ही में कलराज मिश्र को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है.
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लालजी टंडन मध्य प्रदेश में दोहराएंगे 'कर्नाटक'
इसी तरह सवर्ण लालजी टंडन को बीजेपी ने मध्य प्रदेश की कमान सौंपी है. इनके जरिये बीजेपी की योजना इस राज्य में भी 'कर्नाटक' दोहराने की होगी. यूपी के ही एक बड़े नेता कल्याण सिंह को बीजेपी ने राजस्थान का राज्यपाल बनाया हुआ है. कल्याण सिंह लोध जाति से हैं, तो इसके जरिए प्रदेश में लोध वोटबैंक को साधे रखा जाएगा. आगरा की पूर्व महापौर बेबी रानी मोर्या पिछड़ी जाति की हैं, जिन्हें उत्तराखंड की राज्यपाल बनाया गया है.
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सत्यपाल मलिक बीजेपी के 'फ्राइडे मैन'
अलीगढ़ से सांसद रहे सत्यपाल मलिक फिलहाल जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल हैं. बीजेपी को जल्द ही कश्मीर समस्या का भी समाधान निकालना है, तो सत्यपाल मलिक से बेहतर और कौन होगा? सत्यपाल मलिक के जरिये बीजेपी एक तीर से दो निशाने साध रही है. सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर बीजेपी उत्तर प्रदेश के जाट वोट बैंक को अपनी मुट्ठी में रखना चाहती है. दूसरे सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की रणनीति को अंजाम देने में मददगार साबित होंगे.
HIGHLIGHTS
- हालिया राज्यपालों के रूप में बीजेपी ने खेला पिछड़ा दांव.
- राज्यों की जरूरत के हिसाब से चुने गए चेहरे.
- बेहद छिपे अंदाज में बीजेपी खेल रही जाति कार्ड.