गुर्जर समाज के इस आंदोलन (Gurjar Andolan) की शैली पुरानी है. वर्ष 2006 में करौली ज़िले के हिण्डोन में गुर्जरों ने रेल पटरियों (Rail Track) पर कब्ज़ा कर लिया था. इससे रेल यातायात (Train rout) ठप हो गया था. इसके बाद 21 मई 2007 को दौसा ज़िले में जयपुर-आगरा राजमार्ग पर गुर्जर जमा हो गए और आंदोलन में हिंसा फूट पड़ी थी. इसमें पीपलखेड़ा पाटोली (PipalKhera Patoli) में 28 लोग मारे गए.
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बता दें राजस्थान ने गुर्जर समुदाय की आबादी 70 लाख है. राज्य में अभी इस समुदाय के आठ विधायक चुने गए हैं. पिछले 13 साल में गुर्जर समुदाय छह बार सड़कों पर उतरा और बड़े बड़े आंदोलन किए. बीजेपी सरकार को चार बार और कांग्रेस सरकार को दो बार गुर्जर आंदोलन का सामना करना पड़ा.
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इसके बाद तत्कालीन बीजेपी सरकार ने जस्टिस जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया. मगर इस कमेटी से भी आरक्षण का मुद्दा हल नहीं हुआ. वर्ष 2008 में मई का महीना फिर रेल और सड़क मार्गों पर ख़ून बिखेर गया. इस बार भी आंदोलन के दौरान क़रीब तीस लोग हिंसा की भेंट चढ़ गए.
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बीजेपी हुकूमत हरकत में आई और गुर्जर समुदाय के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया. लेकिन यह प्रावधान अदालत की रोक से सिरे नहीं चढ़ा. इस बीच कांग्रेस सत्ता में आ गई और गुर्जर वर्ष 2010 में फिर सड़कों पर उतर आए. सरकार ने पांच फ़ीसदी आरक्षण तजवीज किया. लेकिन इससे आरक्षण की सीमा पचास से ज़्यादा हो गई. चार फ़ीसदी आरक्षण पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी.
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गुर्जर समुदाय ने 2015 में वे फिर आंदोलन पर उतर आये. इस पर बीजेपी सरकार ने एक बार फिर 5 प्रतिशत आरक्षण का दाव आजमाया. पर इससे फिर राजस्थान में आरक्षण अपनी 50 प्रतिशत की स्वीकार्य सीमा से आगे चला गया और हाई कोर्ट ने रोक लगा दी.
Source : News Nation Bureau