लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू हो गया है. CAA लागू होने के बाद इस कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों - हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन इस कानून का फायदा म्यांमार से आए रोहिंग्या, पाकिस्तान के अहमदिया या अफगानिस्तान के हजरा समुदाय को नहीं मिलेगा. इस कानून के लागू होने के बाद देश में सियासी बयानबाजी भी शुरू हो गई है. सत्ता पक्ष और विपक्ष इस मुद्दे पर आमने-सामने है. बीजेपी ने विपक्ष पर CAA को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है. बीजेपी का आरोप है कि रोहिंगियां के पक्षधर प्रोपगेंडा कर रहे हैं. विपक्ष झूठ का व्यापार बंद करे. CAA से देश के नागरिकों का संबंध नहीं है. CAA से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी. शरणार्थी प्रताड़ित होकर भारत आए.
दरअसल, 2016 में मोदी सरकार ने पहली बार CAA को लोकसभा में पेश किया था. उस दौरान लोकसभा से यह कानून पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण यह अटक गया. 2019 में मोदी सरकार ने इसे फिर से लोकसभा में पारित कराया और फिर राज्यसभा में भी इस पर मुहर लग गई. 10 जनवरी,2020 को राष्ट्रपति की इसे मंजूरी मिल गई, लेकिन देशभर में इसपर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. इस दौरान इसे रोक दिया गया. 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार ने इसे लागू कर दिया है. अब इस पर राजनीति भी तेज हो चली है.
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भारतीय नागरिकों पर क्या होगा असर?
केंद्र सरकार ने अपने बयान में कहा है कि CAA के जरिए मिलने वाली नागिरकत वन-टाइम बेसिस पर ही होगी. यानी कि 31 दिसम्बर 2014 के बाद गैर-कानूनी तरीके से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता नहीं दी जाएगी. इस कानून को लागू होने के बाद भारत के किसी भी नागरिक या वो किसी भी धर्म का क्यो ना हो उसकी नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
Source : News Nation Bureau