प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की जम्मू-कश्मीर के नेताओं से सर्वदलीय बैठक के बाद सूबे में सियासी गतिविधियां तेज हो गई हैं. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन (Delimitation) को लेकर आयोग क्षेत्रीय पार्टियों से बात कर रहा है. इस बीच जम्मू प्रांत की भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने निर्वाचन क्षेत्रों को दोबारा बनाए जाने के लिए 2011 की जनगणना (Census) के आंकड़ों के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई है. आयोग के सामने प्रेजेंटेशन देने पहुंचे बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल ने परिसीमन में मतदाता सूची को ध्यान में रखे जाने की बात कही है. बीजेपी का आरोप है कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों में हेराफेरी की गई थी.
2011 के जनगणना आंकड़ों में हेराफेरी का आरोप
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व मंत्री सुनील शर्मा ने कहा, 'आंकड़ों में हेराफेरी की वजह से 2011 की जनगणना के इस्तेमाल का विरोध किया था.' उन्होंने कहा, 'चूंकि मतदाता सूची हर साल अपडेट होती है, तो उसके आधार पर जनसंख्या अनुपात का पता लगाया जाना चाहिए.' शर्मा के नेतृत्व में किश्तवार, डोडा और रामबन जिले के बीजेपी प्रतिनिधिमंडल ने पैनल के सामने अपनी मांग रखी थी. गौरतलब है कि केंद्र शासित प्रदेश के पार्टी प्रमुख रविंद्र रैना की अगुवाई में एक अलग टीम ने पैनल से मुलाकात की थी. उनका कहना था कि इससे पहले हुए परिसीमन में एक क्षेत्र के पक्ष में 'एकतरफा' फैसला किया गया था. प्रतिनिधिमंडल ने बढ़ी हुई आबादी के आंकड़ों की जांच के लिए आधार डाटा का उपयोग करने की सलाह दी है. सरकार की तरफ से तैयार किए गए जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 2019 में 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाना तय हुआ है.
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बीजेपी ही नहीं, अन्य पार्टियां भी कर रही है विरोध
सिर्फ बीजेपी की प्रांतीय ईकाई ही नहीं जम्मू प्रांत में अन्य पार्टियां भी पहले ही परिसीमन के लिए 2011 की जनगणना का विरोध कर चुकी हैं. जनगणना के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1.22 करोड़ है. इनमें से 68.88 लाख कश्मीर प्रांत और 53.78 लाख जम्मू में हैं. जम्मू के दलों का कहना है कि ये आंकड़े कश्मीर के पक्ष में बदले गए हैं. 2001 और 2011 के बीच कश्मीर में जनसंख्या 26 फीसदी बढ़ी है, जबकि जम्मू में यह आंकड़ा 21 प्रतिशत है. सरकार की तरफ से 2019 में संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक दोनों प्रांतों में मतदाताओं में काफी कम अंतर है. जम्मू में मतदाता 37.33 लाख है, वहीं कश्मीर में 40.10 लाख मतदाता हैं. जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार परिसीमन 1995 में हुआ था.
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विरोध के हैं ये भी कारण
2011 की जनगणना का विरोध करने वाले पहला तर्क यही देते हैं कि 1990 में आतंकवाद के बढ़ने के बाद घाटी से बड़े स्तर पर पंडितों और सिखों का पलायन हुआ. इसके बावजूद 2001 की जनसंख्या से जम्मू की आबादी कश्मीर की तुलना में धीमे कैसे बढ़ी. खास बात यह है कि जम्मू-कश्मीर देश का एकमात्र ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश होगा, जिसका परिसीमन 2011 की जनगणना के आधार पर किया जा रहा है. आखिरी बार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का परिसीमन 2001 जनगणना के आधार पर किया गया था. श्रीनगर में परिसीमन आयोग के सामने पहुंचे नेशनल कांफ्रेंस ने कहा कि आदर्श रूप से परिसीमन राज्य का दर्जा बहाल करने के बाद किया जाना चाहिए. इस दौरान पार्टी ने सवाल उठाए कि 2026 में क्या होगा, जब पूरा देश 2021 के जनगणना के आधार पर परिसीमन के दौर से गुजरेगा. पीडीपी ने भी इस पैनल का विरोध किया है और सीपीएम ने कहा है कि मौजूदा परिसीमन के लिए 2011 की जनगणना का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
HIGHLIGHTS
- 2011 की जनगणना आंकड़ों में हेराफेरी का लगा रही है बीजेपी आरोप
- बीजेपी ही नहीं अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी कर रही हैं उस डाटा का विरोध
- कुछ विरोध के लिए विरोध कर रहे, तो कुछ के पास हैं वाजिब तर्क