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ब्लैक वारंट: ऐसे बनी तिहाड़ जेल जनता पार्टी की जन्मस्थली

'ब्लैक-वारंट' को लिखा है तिहाड़ जेल में 35 साल नौकरी कर चुके सुनील गुप्ता ने, सुनेत्रा चौधरी के साथ मिलकर. 'ब्लैक-वारंट' को प्रकाशित किया है रोली प्रकाशन ने.

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Aditi Sharma
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ब्लैक वारंट: ऐसे बनी तिहाड़ जेल जनता पार्टी की जन्मस्थली

ब्लैक वारंट( Photo Credit : फोटो- IANS)

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'जब मैं पढ़ाई कर रहा था तब रेडियो पर सुना और अखबारों में पढ़ा करता था कि देश में जनता पार्टी का जन्म तिहाड़ जेल में हुआ है. यह सब सुन-पढ़ कर अजीब लगता था कि जेल भला किसी राजनीतिक पार्टी की जन्मस्थली कैसे हो सकती है? भला जेल में भी कहीं राजनीतिक पार्टियां पैदा हुआ या फिर बना करती हैं?

सन् 1981 में जब मैंने तिहाड़ जेल में बतौर सहायक जेल-अधीक्षक नौकरी शुरू की, तब मेरे इस अजीब-ओ-गरीब सवाल का माकूल कहिए या फिर सटीक, जवाब यहां बंद मुजरिमों और पुराने जेल स्टाफ की मुंह-जबानी मिल गया। तब मैं समझा कि आखिर तिहाड़ जेल कैसे कब और क्यों बनी थी जनता पार्टी की जन्मस्थली। वह जनता पार्टी, जिसने बाद में इंदिरा गांधी जैसी शक्तिशाली राजनैतिक क्षमता वाली महिला को भी पटखनी देकर दुनिया को हिला दिया था.'

ऐसे ही और न जाने कितने सनसनीखेज खुलासे पढ़ने को मिलेंगे आपको-हमें इस 'ब्लैक-वारंट में. 'ब्लैक-वारंट' को लिखा है तिहाड़ जेल में 35 साल नौकरी कर चुके सुनील गुप्ता ने, सुनेत्रा चौधरी के साथ मिलकर. 'ब्लैक-वारंट' को प्रकाशित किया है रोली प्रकाशन ने.

'ब्लैक-वारंट' दरअसल, सुनील गुप्ता की आंखों देखी और कानों सुनी अपनी जिंदगी का फलसफा है. सुनील गुप्ता सन् 2016 में तिहाड़ जेल से कानूनी-सलाहकार के पद से रिटायर हो चुके हैं. 'ब्लैक-वारंट' में दर्ज खुलासों के बारे में पूछे जाने पर सुनील गुप्ता ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, '1970 के दशक में सब जानते-समझते थे कि इंदिरा गांधी को पटखनी देने की कुव्वत जनता पार्टी ने ही दिखाई थी। मगर इस जनता पार्टी की जन्मस्थली हर कोई तिहाड़ जेल को ही मानता था. मुझे हैरत होती थी कि भला जेल भी कहीं किसी राजनीतिक पार्टी का 'बर्थ-प्लेस' हो सकती है? सन् 1981 के करीब जेल सर्विस जब जॉइन की तब वहां पहले से नौकरी कर रहे मुलाजिमान और सजायाफ्ता मुजरिमों ने इस रहस्य से परदा उठाया.'

गुप्ता ने कहा, 'तिहाड़ में बंद कैदी और पुराने मुलाजिमान मुझे बताया करते थे कि आपातकाल में यूं तो देश भर की जेलें इंदिरा गांधी के हुक्म पर भरी गई थीं, लेकिन तिहाड़ में बंद राजनैतिक कैदी खुद को बाकी जेल के कैदियों से कहीं ज्यादा रुतबे वाला समझते थे। क्योंकि तिहाड़ एशिया की सबसे बड़ी और सुरक्षित व नामदार जेल थी। जेल में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने जनसंघी, स्वतंत्र पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी सहित तमाम अन्य छोटी-बड़ी पार्टियों के नेताओं को बंद करा दिया था. ऐसा कराते समय वह यह भूल गईं कि उनकी यह सबसे बड़ी गलती साबित होगी.'

सुनील गुप्ता ने ये सारे खुलासे 26 नवंबर को हमारे-आपके हाथों में आने वाली अपनी किताब 'ब्लैक-वारंट' में किए हैं.

उन्होंने आईएएनएस से आगे कहा, 'इमरजेंसी के दौरान जब इंदिरा के तमाम धुर-विरोधी राजनैतिक विचारधारा के अलग-अलग नेता एक छत (तिहाड़ जेल) के नीचे इकट्ठे मिले, तो वो इंदिरा गांधी के लिए ही भारी पड़ गया। तिहाड़ में बंद इंदिरा के उन हजारों धुर-विरोधियों ने जेल में ही आपस में मिलकर इंदिरा के खिलाफ एकजुट होने की योजना को अंजाम तक पहुंचा दिया.'

सुनील गुप्ता ने कहा, 'दरअसल इमरजेंसी में तिहाड़ जेल में बंद राजनीतिक बंदियों में सबसे ज्यादा रुतबा हुआ करता था जॉर्ज फर्नांडीस और नानाजी देशमुख का। इनका साथ देते थे अरुण जेटली, विजयराजे सिंधिया जैसे युवा और इंदिरा गांधी के धुर-विरोधी नेता। मैंने जेल में जो कुछ सुना, उसके मुताबिक तो जनता पार्टी बनाने के सूत्रधार सच मायने में जॉर्ज फर्नांडीस-नानाजी देशमुख ही रहे। जॉर्ज फर्नांडीस ही वह शख्सियत थे, जिनकी उस जमाने में जनसंघ और कम्युनिस्टों, दोनों पर गजब की पकड़ थी। कहा तो यह भी जाता था कि फर्नांडीस और नाना की जोड़ी के बिना तिहाड़ जेल जनता पार्टी की जन्मस्थली शायद कभी नहीं बन पाती। जॉर्ज जैसे मजबूत दीदे वाले इंदिरा के धुर-विरोधी दीदावर का ही जिगर था कि उन्होंने जेल में बंद होने के बाद भी इंदिरा गांधी के खिलाफ जनता पार्टी खड़ी कर दी.'

गुप्ता ने कहा, 'वे सब चुपचाप इकट्ठे हो गए। चूंकि यह सब जेल के अंदर हो रहा था, लिहाजा इंदिरा गांधी और उनके विश्वासपात्रों तथा देश के खुफिया तंत्र को इसकी भनक तक नहीं लगी। बस तभी जेल में बंद अलग-अलग पार्टियों के कई नुमाइंदों ने मिल-बैठकर एक नई राजनीतिक पार्टी को जन्म दे दिया। जेल में जन्मी उसी नई राजनीतिक पार्टी का नाम रखा गया था 'जनता पार्टी', जो बाद में इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर के लिए जी का जंजाल बन गई.'

Source : IANS

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