महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। महाराष्ट्र में ऑटो परमिट के लिए मराठी भाषा को अनिवार्य करने वाले सरकार के फैसले को ही हाई कोर्ट ने अवैध करार दे दिया है।
साल 2015 में महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना कोटे से परिवहन मंत्री बने दिवाकर रावते ने कहा था कि ऑटो चलानेवाले को स्थानीय भाषा का ज्ञान होना जरूरी है जिससे ग्राहकों को आसानी हो। जिस वक्त महाराष्ट्र सरकार ने ये फैसला किया था कि उस वक्त भी इसका काफी विरोध हुआ था।
महाराष्ट्र में ऑटो परमिट जारी करने से पहले सरकार ने लिखित परीक्षा कराने का भी फैसला किया था। परीक्षा का मकसद परमिट पाने वाले के मराठी भाषा के ज्ञान को जांचना ही था।
कब शुरू हुआ था विवाद
महाराष्ट्र सरकार ने सर्कुलर जारी कर फैसला किया था कि 1 नवंबर 2016 से सिर्फ उन्हीं लोगों को ऑटो रिक्शा की परमिट दी जाएगी जिन्हें मराठी बोलनी आती हो।
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ऑटो रिक्शा परमिट सिर्फ मराठी भाषी लोगों को दिए जाने का लेकर ये विवाद साल 2015 में दिवाली के समय शुरू हुआ था। सरकार ने दिवाली पर 1 लाख नए ऑटो परमिट जारी करने का फैसला किया था। इस नए परमिट के लिए सरकार ने मराठी भाषा के ज्ञान को अनिवार्य कर दिया था जिसका विरोध शुरू हो गया था।
सिर्फ मुंबई में 70 फीसदी ऑटो चालक गैर मराठी भाषी
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया था कि पिछले साल 7 हजार 843 ऑटो परमिट इश्यू किए गए थे। इन जारी किए गए परमिट में 5 हजार 303 गैर मराठी भाषी लोगों को दिया था।
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एक आंकड़े के मुताबिक महाराष्ट्र की राजधानी सिर्फ मुंबई में 2 लाख लोग ऑटो रिक्शा चालक है जिसमें 70 फीसीदी ऑटो रिक्शा चालक यूपी और बिहार के हैं। हाई कोर्ट के इस ताजा फैसले के बाद उत्तर भारत के लाखों ऑटो चालकों को वहां राहत मिलने की उम्मीद है।
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Source : Kunal kaushal