एल्गार परिषद मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) से जांच कराने वाली याचिका को 7 सितम्बर तक स्थगित कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि सभी संबंधित व्यक्ति तक पेटिशन की कॉपी नहीं पहुंची है इसलिए फिलहाल इसे स्थगित किया जाए। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पुलिस पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि जब यह मामला कोर्ट में लंबित है तो पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कैसे आयोजित किया।
पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हिंसा हुई थी। इस संघर्ष में एक युवक की मौत हो गई थी और चार लोग घायल हुए थे। जिसके बाद हिंसा की आंच महाराष्ट्र के 18 जिलों तक फैल गई।
गौरतलब है कि कोरेगांव-भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था। अंग्रेजों की सेना में काफी संख्या में दलित सैनिक भी शामिल थे। इस लड़ाई की वर्षगांठ मनाने के लिए हर साल पुणे में हजारों की संख्या में दलित समुदाय के लोग एकत्र होते हैं और कोरेगांव भीमा से एक युद्ध स्मारक तक मार्च करते हैं।
इस रैली में प्रकाश आंबेडकर, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, जेएनयू छात्र उमर खालिद, आदिवासी एक्टिविस्ट सोनी सोरी, हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल समेत कई अन्य लोग मौजूद रहे।
उस रैली में कई नेताओं ने भाषण दिए, जिसके बाद यलगार परिषद से जुड़ी दो और एफआईआर पुणे के विश्रामबाग पुलिस थाने में रिपोर्ट की गई। पहली एफआईआर के मुताबिक जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया था।
वहीं दूसरे एफआईआर में तुषार दमगुडे की शिकायत पर यलगार परिषद से जुड़े अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया। जिसके बाद पांच एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया गया था।
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पुलिस के मुताबिक इस लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाए जाने से एक दिन पहले 31 दिसंबर को एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भाषण ने हिंसा भड़काई।
Source : News Nation Bureau