1971 की जंग में पाकिस्तान को मात देकर बांग्लादेश जैसा नया देश बनाने वाले इंडियव आर्मी के सेनापति यानी फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने एक एक बार कहा था कि अगर कोई शख्स कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता तो या तो वो झठ बोल रहा है या वो गोरखा है. सैम मानेकशॉ जैसे बड़े मिलिट्री लीडर की ये तारीफ इस बात का प्रमाण है कि नेपाल से आकर इंडियन आर्मी में भर्ती होने वाले गोरखा जवान कितने बहादुर होते हैं. इंडियन आर्मी की शान ये गोरखा जवान इन दिनों चर्चा में हैं. अब इनके भारत की सेना में भर्ती होने की नहीं बल्कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भाड़े के सैनिकों के तौर पर शामिल होने खबरें आ रही हैं.
यही नहीं , भारत का दुश्मन देश चीन भी अब अपनी फौज में इन गोरखा सैनिकों को शामिल करने की प्लैनिंग कर रहा है जबकि इंडियन आर्मी में इनकी भर्ती फिलहाल बंद है. तो आखिर वो कौन से हालात है जिनके चलते गोरखा अब रूस जाकर भाड़े सैनिक बन रहे हैं और कैसे चीन इन सैनिकों पर अपनी नजरें गढ़ा रहा. पहाड़ी देश नेपाल के इन गोरखा सैनिकों को बहादुर और वफादार माना जाता है. 1962 का भारत चीन युद्ध हो या फिर 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध हों या फिर कारगिल की जंग.गोरखा सैनिकों ने भारत की हर जंग में कुर्बानी दी है .
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वही गोरखा सैनिक और रूस -यूक्रेन युद्ध में भाड़े के सैनिकों के तौर पर रूस की ओर से लड़ रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स से मुताबिक रूस की ओर से इन्हें 50,000 नेपाली रुपए तनख्वाह दी जा रही है. अगर ये सैनिक एक साल से ज्यादा वक्त तक जंग में लड़ते हैं तो इन्हें लगभग तीन लाख नेपाली रुपए मिलेंगे और रूस की नागरिकता भी दी जाएगी. रूस ही नहीं इन वीर गोरखाओं पर चीन की भी नजर है. हाल ही में चीन की ओर से एक एनजीओ ने नेपाल में स्टडी की गई थी जिसका मकसद चीन की सेना में गोरखाओं की भर्ती की संभावनाओं को तलाशना है.
(रिपोर्ट - Sumit Kumar dubey)
HIGHLIGHTS
- रूस-यूक्रेन युद्ध में भाड़े के सैनिकों के तौर पर शामिल होने खबरें आ रही
- चीन भी अब अपनी फौज में इन गोरखा सैनिकों को शामिल करने की प्लैनिंग कर रहा
- नेपाल के इन गोरखा सैनिकों को बहादुर और वफादार माना जाता है