गुजरात हाईकोर्ट ने मोदी सरकार से भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लेकर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा किए गए संशोधन और राष्ट्रपति की सहमति को लेकर केंद्र सरकार को अपना जवाब 28 अगस्त को दायर करने को कहा है। मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कॉरिडोर परियोजना में अपनी जमीन खो चुके पांच किसानों की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति वीएम पंचोली की खंडपीठ में शुक्रवार (25 अगस्त) को सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता ने गुजरात सरकार द्वारा 2016 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन का विरोध करते हुए कहा कि सार्वजनिक हितों की परियोजना के लिए प्रभावित व्यक्तियों का सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन आवश्यक नहीं है।
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याचिकाकर्ता के वकील आनंद यागनिक ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार ने अभी तक 2013 अधिनियम को सहमति देने से पहले राष्ट्रपति की मंजूरी पर कोई प्रतिक्रिया दायर नहीं की है।
यागनिक ने अदालत से कहा कि अगर राष्ट्रपति संसोधन के हर पहलू से अवगत होते को संशोधन को अपनी सहमति कभी नहीं देते।
इसके साथ ही याचिकाकर्ता के वकील ने गुजरात में लैड बिल संसोधन को लेकर सरकार की ओर से राष्ट्रपति के साथ कइ गए सभी संचारों को रिकॉर्ड करने की मांग की, ताकि ये पता चल सके की राष्ट्रपति संशोधन बिल के हर पहलू से अवगत है कि नहीं।
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पूरे मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार को 28 अगस्त तक जवाब दाखिल करने की मोहलत दी है।
बता दें कि भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह संशोधन एसआईए से जुड़ा संशोधन, जो राज्य सरकार 2016 में लाई थी वह तर्कहीन है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की अहमदाबाद से मुंबई तक बुलेट ट्रेन चलाने की योजना प्रस्तावित है। जिसके लिए कुछ जगहों पर किसान जमीन का उचित मुआवजा नहीं दिए जाने का आरोप लगाते हुए सरकार को अपनी जमीन देने से इनकार कर रहे हैं। जिसकी वजह से भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया गया है।
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Source : News Nation Bureau