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CAA: संविधान पीठ में जा सकता है CAA का मामला, सुप्रीम कोर्ट का स्टे लगाने से भी इनकार

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का मामला सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को भेज दिया है. कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में स्टे लगाने से भी इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि सीएए की सुनवाई अलग-अलग जोन बनाकर की जाएगी.

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Kuldeep Singh
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CAA: संविधान पीठ में जा सकता है CAA का मामला, सुप्रीम कोर्ट का स्टे लगाने से भी इनकार

CAA: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को भेजा मामला, स्टे लगाने से इंकार( Photo Credit : फाइल फोटो)

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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का मामला अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को भेजा जाएगा. कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में स्टे लगाने से भी इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि सीएए की सुनवाई अलग-अलग जोन बनाकर की जाएगी. त्रिपुरा और असम के मामलों की अलग सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की चार हफ्ते बाद सुनवाई करेगा. कोर्ट ने कहा कि एक मामले में एक वकील सिर्फ एक मामले में ही अपना पक्ष रखेगा. असम और त्रिपुरा के मामले पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के दो सप्ताह में जबाव मांगा है. 

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दर्ज याचिकाओं की सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि कोर्ट को एनआरसी पर रोक लगानी चाहिए. इस पर सीजेआई ने कहा कि सरकार का पक्ष सुने बिना इस पर रोक नही लगाई जा सकती है. कोर्ट ने साफ कहा कि रोक लगाने का मतलब एक तरह का स्टे होता है और कोर्ट इस मामले में किसी भी तरह का स्टे नहीं दे सकता है. कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कोई भी कोर्ट अब नागरिकता संशोधन कानून पर सुनवाई नहीं करेगी. 

सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि प्रकिया पर फिलहाल रोक लगा देनी चाहिए क्योंकि इसके तहत नागरिकता मिलने के बाद वापस नागरिकता लेना मुश्किल हो जाएगा. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा विशेष परिस्थितियों में नागरिकता दिये जाने के बाद वापस भी ली जा सकती है. अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से जबाव देने के लिए छह हफ्ते का वक्त मांगा. याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में तेजी से सुनवाई की ज़रूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन जजों की बेंच मामले में किसी भी तरह की राहत नहीं दे सकती है. इस मामले में 5 जजों की बेंच ही किसी तरह की राहत दे सकती है. 

Source : News Nation Bureau

caa CAA Protest caa in supreme court
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