''पंछी नदिया पवन के झोंके कोई सरहद ना इन्हें रोके। सरहद इंसानों के लिए है सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसा होके।'' गीतकार जावेद अख्तर के इस गीत को अपने शब्दों में सजाया था और अल्का याग्निक और सोनू निगम ने रिफ्यूजी फिल्म के इस मधुर गीत को अपनी आवाज दी थी तो सबने यही सोचा था कि सच में पंछी नदिया और पवन के झोंकों के लिए कोई सरहद नहीं होता है लेकिन अब नदियों के लिए भी सीमा तय किया जा रहा है।
कावेरी नदी जल विवाद को लेकर जिस तरह कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच झगड़े बढ़ते जा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अब उन नदियों पर भी कब्जा जमाने की होड़ शुरू हो गई है। देश की ज्यादातर नदियां कई राज्यों से होकर बहती है। जल की मांग बढ़ने के कारण जल बंटवारे को लेकर कई राज्यों के बीच विवाद काफी पहले से शुरू है।
जल विवाद में न सिर्फ कई राज्य आमने सामने हैं बल्कि नदी विवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय विवाद भी आए दिन देखने को मिलता है। कुछ ऐसे ही मामले आज हम आपको बताते हैं कि कौन कौन से देश के साथ नदी को लेकर भारत के साथ विवाद है और कौन-कौन राज्य एक दूसरे के आमने सामने हैं। पहले हम बात करते हैं भारत के उन राज्यों की जिनके बीच आए दिन 'पानी पर पंचयात' होते रहते हैं।
कावेरी नदी जल विवाद
कुल 87,900 वर्ग किलोमीटर का कावेरी बेसिन भारतीय क्षेत्र का 2.7 प्रतिशत है। इस नदी का बेसिन तमिलनाडु में 48,730 वर्ग किलोमीटर है, जबकि यह कर्नाटक में 48,730 और केरल में 2,930 वर्ग किलोमीटर है। कर्नाटक से निकलकर यह नदी तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी के रास्ते कई क्षेत्रो से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
कावेरी जल विवाद आजादी से भी पहले से चला आ रहा है। 1892 में पहली बार मैसूर राज्य और मद्रास प्रेसिडेंसी यानि तमिलनाडु के बीच जल बंटवारे को लेकर समझौते हुए। कावेरी को लेकर 1924 में भी एक समझौता हुआ। भारत की आजादी के बाद मैसूर को कर्नाटक में शामिल कर दिया गया था। 1892 और 1924 के समझौते से कर्नाटक को ऐसा लगता था कि मद्रास प्रेसिडेंसी पर अंग्रेजों का प्रभाव अधिक था, इसलिए समझौता मद्रास के पक्ष में किया गया। इसके बाद से ही विवाद शुरू हुआ था।
भारत सरकार ने 1972 में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी की रिपोर्ट और विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद अगस्त 1976 में कावेरी जल विवाद को लेकर सभी चार राज्यों (कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी) के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते की घोषणा संसद में भी की गई। लेकिन इस समझौते का पालन नहीं हुआ और ये विवाद जारी रहा। जो आज भी दोनों राज्यों के बीच जारी है।
कृष्णा नदी जल विवाद
कृष्णा नदी का पानी आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक के बीच कृष्णा नदी जल विवाद का एक कारण है। यह नदी महाबलेश्वर से निकलकर महाराष्ट्र के सतारा व सांगली जिलों से होकर कर्नाटक व दक्षिणी आंध्र प्रदेश में बहती है। कृष्णा नदी कर्नाटक के 60 प्रतिशत क्षेत्रों को नम करते हुए लगभग तीस लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है।
इस नदी के विवाद को निपटाने के लिए 1969 में बछावत न्यायाधिकरण का गठन हुआ, जिसने 1976 में अपना निर्णय दिया। निर्णय में कर्नाटक को 700 अरब क्यूसेक, आंध्र प्रदेश को 800 अरब क्यूसेक व महाराष्ट्र को 560 अरब क्यूसेक पानी के उपयोग की छूट दी गयी। इस मामले में कई निर्णयों के बाद भी कृष्णा नदी जल विवाद का अंत नहीं हुआ। इस जल विवाद को लेकर अगली सुनवाई वर्ष 2050 के बाद किया जाएगा।
नर्मदा नदी जल विवाद
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक से निकलती है। इसकी लम्बाई 1300 किलोमीटर है। गुजरात, मध्य प्रदेश व राजस्थान में नर्मदा के जल को लेकर विवाद है। इस मामले को सुलझाने को लेकर केंद्र सरकार ने नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया। न्यायाधिकरण ने 7 दिसंबर, 1979 को अपना निर्णय दिया। इस निर्णय में नर्मदा जल विवाद से जुड़े राज्य-गुजरात को 90 लाख एकड़ फीट, मध्य प्रदेश को 182.5 लाख एकड़ फीट, महाराष्ट्र को 2.5 लाख एकड़ फीट जल उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया।
सोन नदी जल विवाद
सोन नदी जल विवाद तीन राज्य- बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच है। 1973 में ही सोन व रिहन्द नदियों के जल विवाद के हल के लिए बाणसागर समझौता हुआ था। बिहार शुरू से ही इस समझौते के काम करने पर आरोप लगाता रहा है। समझौते के अनुसार रिहन्द नदी का पूरा पानी बिहार को आवंटित किया गया था पर एनटीपीसी और उत्तर प्रदेश सरकार रिहन्द जलाशय से बिहार के हिस्से का पानी इस्तेमाल करते रहे हैं। इस मामले को लेकर बिहार का यह भी कहना है कि इंद्रपुरी बैराज पर सोन नदी के समूचे जल का 100 वर्षों से ज्यादा के उसके उपभोग के अधिकार को दरकिनार करके यह समझौता किया गया।
यमुना जल विवाद
यमुना जल विवाद भी काफी पुराना है। पांच राज्य हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश जुड़े हुए हैं। सबसे पहले यमुना जल समझौता 1954 में मात्र दो राज्यों हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मध्य हुआ था, जिसके अंतर्गत यमुना जल में हरियाणा का हिस्सा 77 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश का हिस्सा 23 प्रतिशत निर्धारित किया गया था और राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के हिस्से का जिक्र तक नहीं आया था। इन राज्यों द्वारा भी अपने हिस्से की मांग के साथ ही विवाद गरमाने लगा।
गोदावरी नदी जल विवाद
गोदावरी प्रायद्वीप भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले से निकलती है। इसकी लंबाई 1465 किलोमीटर है। गोदावरी के जल के लिए महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडीशा व आंध्र प्रदेश के बीच काफी विवाद है। इसे सुलझाने के लिए सरकार ने अप्रैल 1969 में एक कमेटी का गठन किया गया था। इस मामले में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी सौंपी थी लेकिन फिर भी गोदावरी नदी जल विवाद पूरी तरह से नहीं सुलझा है।
सतलज-रावी-व्यास विवाद
संयुक्त पंजाब में नदी जल विवाद जैसी कोई बात नहीं थी। नवंबर 1966 में पंजाब के एक हिस्से को अलग कर नए राज्य हरियाणा की स्थापना की गई। सतलज, रावी और व्यास नदियों के जल बंटवारे से संबंधित विवाद पंजाब और हरियाणा के बीच रहा है। इसके बाद हरियाणा ने अपने हिस्से का पानी पंजाब से मांगा और यहीं से इन दोनों राज्यों के बीच नदी जल विवाद शुरू हुआ।
Source : अभिरंजन कुमार