सीडीएस जनरल बिपिन रावत को सिर्फ दुश्मनों देशों के खिलाफ आक्रमक रुख के लिए ही नहीं, बल्कि सैन्य प्रतिष्ठान में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू करने के लिए भी याद किया जाएगा. जनरल रावत हमेशा कहते थे कि भारतीय सशस्त्र बल सम्मान के लिए हैं, न की पैसे के लिए. भारत के पहले सीडीएस (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) के रूप में सीडीएम जनरल बिपिन रावत ने इंडियन आर्मी को सीबीआई से मेरठ में विवाहित आवास परियोजना और दिल्ली में सलारिया ऑफिसर्स एन्क्लेव के सैन्य इंजीनियरिंग सेवाओं की ओर से कथित भ्रष्टाचार के बारे में पूछताछ करने के लिए कहा था.
एमएसपी फेज-। और फेज-II की कुल स्वीकृत लागत लगभग 6,033 करोड़ रुपये और 13,682 करोड़ रुपये थी. घटिया निर्माण के लिए जरनल रावत ने एमईएस के शीर्ष अफसरों को फटकार लगाई थी और उन्हें बताया था कि सलारिया एन्क्लेव नई दिल्ली नहीं बल्कि बमबारी वाले सीरिया जैसा दिखता है, जिसमें अफसरों और जवानों के आवास के लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है.
भारतीय सेना चीफ के रूप में जनरल रावत ने कारों की खरीद पर 12 लाख की सीमा लगा दी, जिससे वे रिटायर्ड जनरलों के गुस्से का कारण बन गए. साथ ही उन्होंने सैन्य कैंटीन की खरीदारी में भी बड़े सुधारों की शुरुआत की थी. उन्होंने पाया कि सेना के शीर्ष अफसर कीमती उत्पाद शुल्क बचा रहे हैं और कैंटीन से मर्सिडीज, एसयूवी कारें तथा शीर्ष-ब्रांड सिंगल माल्ट व्हिस्की जैसी लक्जरी सामान खरीद रहे हैं. इसके बाद सीडीएस बिपिन रावत ने कैंटीन सूची से इन वस्तुओं को यह कहते हुए हटा दिया कि एक सामान्य अफसर या जवान के वेतन से यह संभव नहीं है.
जनरल रावत ने कैप लगाने और कैंटीन में सिर्फ भारतीय निर्मित विदेशी शराब बेचने की मंजूरी दी थी, इसलिए सेना के कई दिग्गज उनसे नफरत करते थे. इस उन्होंने कहा कि जिनके पास पैसा है उन्हें खुले बाजार से मर्सिडीज या ब्लू लेबल व्हिस्की खरीदना चाहिए. भारत के राजकोष में सेंध नहीं लगाना चाहिए. साथ ही उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि ग्रीस के रास्ते सैन्य कैंटीन में घटिया उत्पाद प्रवेश न करें.
Source : News Nation Bureau