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राजद्रोह कानून पर ‘औपनिवेशिक बोझ’ से मुक्त होगी केंद्र सरकार, SC में नया हलफनामा

केंद्र ने शीर्ष अदालत से यह भी अनुरोध किया है कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती तब तक देशद्रोह का मामला नहीं उठाया जाए.

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Pradeep Singh
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Supreme court

सुप्रीम कोर्ट( Photo Credit : TWITTER HANDLE)

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राजद्रोह से संबंधित औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून का बचाव करने और सर्वोच्च न्यायालय में इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहने के दो दिन बाद सरकार ने सोमवार को कहा कि उसने कानून के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नए हलफनामे में केंद्र ने कहा, “आजादी का अमृत महोत्सव (स्वतंत्रता के 75 वर्ष) की भावना और पीएम नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण में भारत सरकार ने धारा 124ए (देशद्रोह कानून)  प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है.”

केंद्र ने शीर्ष अदालत से यह भी अनुरोध किया है कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती तब तक देशद्रोह का मामला नहीं उठाया जाए. केंद्र ने हलफनामे में प्रस्तुत किया कि देश में न्यायविदों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और नागरिकों द्वारा सार्वजनिक डोमेन में इस मुद्दे पर अलग-अलग विचार मौजूद हैं. हलफनामे में आगे लिखा गया है कि सरकार ऐसे समय में ‘औपनिवेशिक बोझ’ को दूर करने की दिशा में काम करना चाहती है, जब देश आजादी के 75 साल पूरे होने की तैयारी कर रहा है.

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इससे पहले, केंद्र ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय में राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून और इसकी वैधता बरकरार रखने के संविधान पीठ के 1962 के एक निर्णय का बचाव किया था. मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 5 मई को कहा था कि वह 10 मई को इसपर सुनवाई करेगी कि क्या राजद्रोह से संबंधित औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सकता है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से दाखिल 38-पृष्ठ लिखित प्रस्तुति में केंद्र ने कहा था, ”कानून के दुरुपयोग के मामलों के आधार पर कभी भी संविधान पीठ के बाध्यकारी निर्णय पर पुनर्विचार करने को समुचित नहीं ठहराया जा सकता. छह दशक पहले संविधान पीठ द्वारा दिये गए फैसले के अनुसार स्थापित कानून पर संदेह करने के बजाय मामले-मामले के हिसाब से इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के उपाय किये जा सकते हैं.”

Supreme Court central government sedition law colonial burden new affidavit filed IN SC
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