केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका का विरोध किया है जिसमें विवाहेत्तर संबंध (अडल्टरी) के मामले में महिला और पुरुषों दोनों को जिम्मेदार ठहराने की मांग की गई थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 497 शादी की पवित्रता को बनाए रखने के लिए लागू किया गया था और इसके खत्म किए जाने से शादी के संबंधों को नुकसान पहुंचेगा।
सरकार ने कहा, 'वर्तमान याचिका में जिस कानून को चुनौती दी गई है, उसे विधायिका ने भारतीय समाज की अनोखी संरचना और संस्कृति को ध्यान में रखकर विवाह की शुचिता की रक्षा के लिए अपनी बुद्धिमत्ता से बनाया है।'
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में आगे कहा है कि विधि आयोग ने वर्तमान में इस मसले का परीक्षण किया है और इसके कुछ क्षेत्रों को चिन्हित किया है, जिनपर विचार करने के लिए उपसमूहों का गठन किया गया है।
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि किसी महिला के गैर मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर सिर्फ उस पुरुष (जिसके साथ महिला से संबंध बनाए हो) के खिलाफ मुकदमा क्यों चले? क्या विवाहित महिला पर मुकदमा नहीं चल सकता?
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा था कि 'आईपीसी की धारा-497 के तहत विवाहेत्तर मामले में पुरुषों को दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है लेकिन महिलाओं को इसमें छूट है। यह लैंगिक भेदभाव वाला कानून है इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित की जाए।'
क्या है आईपीसी 497
इसके तहत किसी महिला से अगर गैर मर्द शारीरिक संबंध बनाता है तो वो उस पर व्यभिचार का मामला चलता है और पुरुष को पांच साल तक कि सजा हो सकती है, लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।
साथ ही इसके तहत अगर शादीशुदा महिला पति की मंजूरी से गैर मर्द से संबंध बनाये तो वो व्यभिचार का मामला नहीं बनता।
याचिकाकर्ता जोसेफ शाइन की याचिका पर कोर्ट के सामने उपस्थित हुए वकील कलीसवरम राज और सुविदत्त सुंदरम ने कहा, 'याचिका में सीआरपीसी की धारा 198(2) को भी खत्म करने की मांग की गई है जिसमें सिर्फ पति शिकायत दर्ज करा सकता है जो कि पुरुष के खिलाफ है न कि महिला के।'
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृश्टया इसे स्वीकारा था कि यह प्रावधान जेंडर न्युट्रल नहीं है।
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Source : News Nation Bureau