कोरोना वायरस (Corona Virus) ने दुनिया भर के 188 देशों की रफ्तार पर ब्रेक लगा रखा है. अमेरिका, इटली समेत कई यूरोपीय देश लॉकडाउन (Lockdown) की स्थिति में हैं, तो भारत देश के कई राज्य आज लॉकडाउन हैं. सिर्फ हमारे यहां ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों ने अपने यहां लोगों की आवाजाही और घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा रखी है. मकसद यही है कि किस तरह कोरोना संक्रमण का फैलाव रोका जा सके. इस बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने यह कहकर और सनसनी फैला दी है कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सिर्फ लॉकडाउन ही काफी नहीं है. दूसरी तरफ भारत को लेकर विशेषज्ञों ने भी चेतावनी जारी की है. इसके तहत अन्य देशों की तरह यदि भारत में भी कोरोना का प्रसार तीसरी स्टेज में हुआ तो हमारे पास चिकित्सकीय उपकरणों की भारी कमी पड़ जाएगी. विशेषज्ञ कहते हैं कि एक अरब 30 करोड़ की आबादी के लिहाज से देश में महज 44 हजार वेंटीलेटर (Ventilators) हैं, जो आपात स्थिति के लिहाज से नाकाफी हैं.
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लॉकडाउन के साथ निगरानी और जांच हो
बीबीसी के दिए साक्षात्कार में विश्व स्वास्थ्य संगठन के माइक रायन ने कहा है कि सिर्फ लॉकडाउन ही कोरोना को रोकने के लिए काफी नहीं है. वक्ती जरूरत इस बात की है कि जो लोग बीमार हैं और कोविड-19 से पीड़ित हैं उन्हें ढूंढा जाए और निगरानी में रखा जाए. तभी इसको रोका जा सकता है. उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि लॉकडाउन के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि इसके खत्म होने पर लोग अचानक बड़ी संख्या में बाहर निकलेंगे और फिर खतरा बढ़ जाएगा. उन्होंने यूरोप और अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने चीन से सबक लेते हुए अपने लोगों से घरों में रहने को कह लॉकडाउन का ऐलान कर दिया है. यूरोप के कई शहरों में बार, रेस्तरां, समेत कई सुविधाओं को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया है.
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हरेक की जांच होनी चाहिए
इसके साथ ही माइक रायन ने कहा कि चीन, सिंगापुर और साउथ कोरिया ने जब लॉकडाउन किया तो उन्होंने उस हर व्यक्ति की जांच की, जिस पर कोरोना वायरस का खतरा था. अब यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों को भी यही मॉडल लागू करना चाहिए. अगर एक बार इसे फैलने से रोक दिया जाए तो बीमारी से निपटा जा सकता है. उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देश फिलवक्त कोरोना वायरस की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. हालांकि सिर्फ एक का ही क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो सका है. ऐसे में लॉकडाउन के साथ-साथ और भी सावधानी बरतने की जरूरत है.
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कमी है वेंटीलेटर्स की
इस बीच हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कामचलाऊ हालत में 40 हजार वेंटीलेटर्स ही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोरोना वायरस स्टेज तीन के तहत तेजी से पांव पसारता है, तो इनकी संख्या सामने आने वाले मरीजों के लिहाज से बेहद कम होगी. गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आए मरीजों में से पांच फीसदी को सांस लेने में आ रही गंभीर समस्या के चलते आईसीयू में रखा जाता है. रविवार को कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में काफी तेजी देखने में आई थी. इसी तरह कोरोना प्रभावित देशों में भी अचानक संख्या में तेजी आई थी.
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दक्षिण कोरिया से सबक ले भारत
द इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर के डॉ ध्रुव चौधरी भी इस आशंका से इंकार नहीं करते हैं. वह स्वीकार करते हैं कि 40 हजार वेंटीलेटर्स में से भी अधिकांश सरकारी मेडिकल कॉलेजों और महानगरों-शहरों के निजी अस्पतालों में हैं. वह कहते हैं कि आईसीयू के मामले में भारत को दक्षिण कोरिया से सबक लेना चाहिए. भारत के पास दक्षिण कोरिया की तुलना में महज 20 फीसदी आईसीयू ही हैं. ऐसे में जरूरत इस बात है कि इनकी संख्या बढ़ाते हुए कोरोना संक्रमित शख्स की पहचान के लिए परीक्षण की गति में तेजी लाई जाए, ताकि कोरोना के फैलाव पर रोक लगाते हुए मरीज को भी तुरंत उपचार उपलब्ध कराया जा सके. चीन का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 से ग्रस्त मरीजों में से 15 फीसदी को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत थी. इनमें से भी पांच फीसदी को वेंटीलेटर्स पर रखना पड़ा था. इटली और ईरान में यदि कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा अधिक है, तो इसकी वजह भी वेंटीलेटर्स की कमी रही है.
HIGHLIGHTS
- WHO ने चेताया लॉकडाउन से नहीं थमेगा कोरोना का कहर.
- भारत में सवा अरब की आबादी पर महज 40 हजार वेंटीलेटर्स.
- एक दिन में 10 हजार लोगों की चांज की ही सुविधा.