पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो क्षेत्र से सैनिकों के पीछे हटने के बाद भारतीय और चीनी सैन्य कमांडरों ने शनिवार को अपनी मैराथन वार्ता के दौरान लद्दाख में 1,597 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अन्य गतिरोध वाले स्थानों से भी सैनिकों को पीछे हटाने के लिए एक रोडमैप बनाने का फैसला किया है. हिंदुस्तान टाइम्स रिपोर्ट की रिपोर्ट में बताया गया है कि हालांकि चांग चीमो नदी के तट पर गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स के गतिरोध वाले बिंदुओं से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया विवादास्पद होने की उम्मीद नहीं है, मगर डेपसांग मैदानी इलाके से पीछे हटने की प्रक्रिया में जरूर दिक्कतें आ सकती हैं.
द डेली ने बताया कि डेपसांग उभार वाले क्षेत्र में गतिरोध है, जहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने राकी और जीवन नुल्लाह में प्रवेश मार्ग को अवरुद्ध करके प्लाइंट 10 से 13 तक भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग में बाधा डालने का प्रयास किया है. चीन इस क्षेत्र में भी यथास्थिति को बदलने का प्रयास करता रहा है. हालांकि भारतीय सेना इन बिंदुओं पर गश्त लगाने का दावा करती है. डेपसांग में भी भारत और चीनी सेनाओं के बीच गतिरोध बना हुआ है.
10वें दौर की वार्ता में दोनों देशों के सकारात्मक रुख को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि अगले चरण में हॉट स्प्रिंग और गोगरा इलाकों से सैनिकों को पीछे हटाने का एलान संभव है और इसके बाद डेपसांग के हल का भी रास्ता निकाला जाएगा. सैन्य कमांडर पूर्वी लद्दाख में जमीन स्तर पर सैनिकों के पीछे हटने की दिशा में काम कर रहे हैं, वहीं पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर प्रस्ताव दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के लिए छोड़ दिया गया है.
हालांकि, विशेष प्रतिनिधियों के स्तर की बातचीत के लिए भारतीय शर्त यह है कि दोनों पक्ष एलएसी पर यथास्थिति बहाल करेंगे और न ही एकतरफा बल के उपयोग से यथास्थिति को बिगाड़ा जाएगा. भारत यह सुनिश्चित करने के लिए भी प्रतिबद्ध है कि चीन और पाकिस्तान लद्दाख क्षेत्र में सिंधु और उसकी सहायक नदियों के लिए खतरा न बन सके.
विश्लेषकों का कहना है कि भविष्य के गतिरोध से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि चीन अपने राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में असमर्थ रहा है. इसमें कोई संदेह नहीं है, क्योंकि चीनी सरकार द्वारा संचालित मीडिया ने खुद ही संकेत दिया है कि बीजिंग 1959 लाइन को लागू करना चाहता है, जिसे लद्दाख में एलएसी के रूप में उस समय भारत द्वारा खारिज कर दिया गया था.
हालांकि भारत की मजबूत मांग रही है कि सैनिकों को अप्रैल 2020 वाली स्थिति में लौट जाना चाहिए और यथास्थिति बदलने वाला कोई भी प्रयास नहीं किया जाना चाहिए. फिलहाल दोनों स्तर पर सैनिकों को पीछे हटाने पर जोर दिया जा रहा है, जिसके बारे में वार्ता के दौरान मुख्य तौर पर चर्चा भी की गई.
पैंगोंग त्सो से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया के बीच ही चीन ने हाल ही में बड़ी मनोवैज्ञानिक चाल चलते हुए 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प से जुड़ा एक वीडियो जारी किया है, जिसमें उलटा भारतीय सैनिकों पर ही आक्रामक होने का आरोप लगाया गया है.
चीन ने इसके साथ ही झड़प में अपने चार सैनिकों के मरने का दावा किया है। इस हिंसक झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. लेकिन चीनी दावे के विपरीत, टास न्यूज एजेंसी ने इस सप्ताह की शुरुआत में बताया कि झड़प के दौरान 45 चीनी सैनिक मारे गए थे. इसके अलावा, भारत के उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाई.के. जोशी ने चीनी पक्ष पर गलत आंकड़े पेश करने का भी आरोप लगाया है.
जोशी ने कहा कि गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 15 जून को जो घटना घटी, उसमें चीनी हताहतों की संख्या 45 तक हो सकती है. उन्होंने कहा कि भारत ने शुरुआत में ही कहा कि इस झड़प में उसके 20 जवान शहीद हुए हैं, जबकि चीन ने अपने मारे गए जवानों की संख्या सार्वजनिक नहीं की. उन्होंने कहा, "मैं अनुमान नहीं लगाना चाहता, लेकिन जब घटना हुई, हम बड़ी संख्या में हताहतों की गिनती करने में सक्षम थे, जिन्हें स्ट्रेचर पर उठाकर वापस लेकर जाया गया था."
उन्होंने सीएनएन-न्यूज 18 के साथ एक साक्षात्कार में यह दावा किया. सैन्य समाचार पोर्टल स्ट्रेटन्यूजग्लोबल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय पक्ष में नौ महीने के लंबे गतिरोध के दौरान लद्दाख में मौसम या स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण एक भी मौत नहीं हुई है.
Source : IANS