सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अवैध तरीके या अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चे माता-पिता की पैतृक संपत्ति का हिस्सा होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने नई व्यवस्था देते हुए कहा कि ऐसे बच्चों को वैध कानून मिलना चाहिए, ताकि उन्हें भविष्य में किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े. करीब 11 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले का निपटारा किया और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया है.
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किस बेंच ने सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसले में कहा कि अवैध या शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्से के लिए अब कानूनी रुप से हकदार हैं. वही आपको बता दें कि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के किसी अन्य संपत्ति के ऊपर हक नहीं जता सकते हैं. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2011) में दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के खिलाफ एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि शून्य/शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे इसके हकदार हैं. उन्हें अपने माता-पिता की संपत्ति विरासत में मिलती है, चाहे वह स्वअर्जित हो या पैतृक.
अन्य संपत्तियों में शेयर का क्या?
आपको बता दें कि यह मामला हिंदू विवाह अधिनियम- 1955 की धारा 16 की व्याख्या से जुड़ा है. जो अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करता है. हालाँकि, धारा 16(3) में कहा गया है कि ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की संपत्ति के हकदार हैं और उन्हें अन्य सहदायिक शेयरों का कोई अधिकार नहीं होगा. इस संदर्भ में प्राथमिक मुद्दा यह था कि हिंदू मिताक्षरा कानून द्वारा शासित हिंदू अविभाजित परिवार में संपत्ति माता-पिता को कब हस्तांतरित की जा सकती है.
Source : News Nation Bureau