भारत (India) और चीन (China) के बीच पिछले एक साल से संबंध सही नहीं चल रहे हैं. चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में घुसपैठ शुरू करने के बाद से दोनों देशों की सेना आमने-सामने है. अगर भारतीय सामरिक विशेषज्ञों की मानें तो हिंद महासागर (Indian Ocean) में भारत का समुद्री प्रभाव बढ़ने से रोकने के लिए चीन भारत को लद्दाख के मसले में उलझाए हुए है. बीते दिनों 12वीं कॉर्प्स की बैठक के बाद आधिकारिक बयान में भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कहा कि लद्दाख के 65 पेट्रोलिंग प्वाइंट्स में से एक गोगरा (Gogra) पोस्ट से फेस ऑफ की स्थिति को कम करने के लिए चीन के साथ एक समझौते पर पहुंच गए हैं. हालांकि इस मसले पर अब तक चीन की ओर से कोई भी बयान नहीं आया है. इसके साथ ही भारत को उम्मीद है कि देपसांग क्षेत्र से सेना हटाने को लेकर भी बातचीत की जाएगी, जहां पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) कथित तौर पर भारतीय सीमा के 15 किलोमीटर अंदर है.
भारतीय पक्ष बफर जोन के पक्ष में
डिफेंस एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी के मुताबिक भारतीय अधिकारियों ने चीन द्वारा प्रस्तावित बफर जोन को स्वेच्छा से स्वीकार किया है. इससे भारतीय सेना अब पारंपरिक पेट्रोलिंग प्वाइंट तक नहीं जा सकेगी, बल्कि भारतीय क्षेत्र में भी पीछे रह जाएगी. देश को बताया गया कि गलवान की झड़प पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 हथियाने को लेकर हुआ था, लेकिन भारत यहां से 1.7 किलोमीटर पीछे हट गया है. गोगरा से 5 किलोमीटर का बफर क्षेत्र भारतीय पेट्रोलिंग पॉइंट 17ए पर केंद्रित है. पैंगोंग लेक वाले क्षेत्र में चीन का दावा फिंगर 4 तक है, लेकिन भारत फिंगर 2 और 3 के बीच वापस चला गया. इस सबके बावजूद भारत सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि 6 हॉटलाइन के अलावा अस्थायी बफर जोन बॉर्डर पर किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए बनाए जा रहे हैं.
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लद्दाख से ध्यान भटका रहा है ड्रैगन
डिफेंस एनालिस्ट्स का मानना है कि हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करने को लेकर चीन लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत को उलझाए हुए है. इस कड़ी में चीन भारत पर दबाव बनाता रहेगा. उसे पता है कि सीमा पर किसी भी तरह कि स्थिरता अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डालती है. भारत चीन की तरह हर चीज़ें एकसाथ नहीं कर सकता. भारत हिंद महासागर के साथ 3488 किलोमीटर के लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर एक साथ बहुत मुखर नहीं हो सकता. गौरतलब है कि रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि लद्दाख बॉर्डर पर चीन के साथ तनातनी के बाद मिलिट्री एसेट्स को लेकर लद्दाख सेक्टर में बड़ा खर्च आया है. भारत सरकार ने 208 अरब रुपये के अतिरिक्त हथियार, गोला-बारूद और लॉजिस्टिक आइटम ख़रीदे हैं. यह नौसेना के हर साल युद्धपोतों और पनडुब्बियों को बनाए रखने में खर्च के बराबर है.
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चीन अपनी नौसेना बना रहा और मजबूत
हिंद महासागर पर प्रभुत्व को लेकर चीनी नौसेना हर साल करीब 20-25 युद्धपोत और पनडुब्बियां जोड़ रही है. हालिया सालों में चीन ने भारतीय नौसेना की तुलना में अधिक टन भार वाले नए जहाजों को लांच किया है. चीन जिबूती में अपना बेस बना रहा है. इसके साथ ही केन्या, तंजानिया, जाम्बिया, जिम्बाब्वे और मेडागास्कर में भी चीनी नौसेना की उपस्थिति है. यही नहीं, अगले 10 सालों में चीन एक स्थायी युद्धवाहक हिंद महासागर में तैनात कर देगा. भारत को मौजूदा चीनी नौसेना के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए और 2035 के चीनी नौसेना पर सोचना और काम करना चाहिए. भूलना नहीं चाहिए कि भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने दिसंबर 2019 में स्वीकार किया था कि नौसेना के गिरते बजट के कारण दीर्घकालिक योजनाओं पर फिर से सोचने पर मजबूर हो गए थे. उन्होंने कहा था कि 2027 तक 200 युद्धपोतों को चालू करने की पहले की योजना के बजाय अधिकतम 175 युद्धपोतों को ही सेवा में लाया जा सकता है.
HIGHLIGHTS
- हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करने की चाल है चीन की
- एलएसी पर मिलिट्री एसेट पर भारत को खर्च करने पड़ रहे खरबों रुपए
- चीनी नौसेना हर साल करीब 20-25 युद्धपोत और पनडुब्बियां जोड़ रही