चीन की कुटिल चाल पूर्वोत्तर में भड़का सकती है हिंसा, केंद्र सतर्क

खुफिया एजेंसियों को पता चला है कि चीन पूर्वोत्तर (North East) के उग्रवादी गुटों को मदद पहुंचा इस क्षेत्र में अशांति फैलाने की साजिश पर काम कर रहा है.

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Nihar Saxena
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North East Extremists

चीन दे रहा पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूहों को मदद.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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लद्दाख (Ladakh) में भारत-चीन सेना के बीच मई में हुए हिंसक संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच जारी गतिरोध दूर नहीं हुआ है. कूटनीतिक और सैन्य स्तर की कई दौर की बातचीत के बावजूद स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं है. इस बीच चीन (China) अपनी कुटिल चालों से भारत को घेरने में लगा है. खुफिया एजेंसियों को पता चला है कि चीन पूर्वोत्तर (North East) के उग्रवादी गुटों को मदद पहुंचा इस क्षेत्र में अशांति फैलाने की साजिश पर काम कर रहा है. 

चीनी इलाके में बना उग्रवादी ठिकाना
गौरतलब है कि पिछले दिनों जानकारी सामने आई थी कि यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम-इंडिपेंडेंट (आई) के चीफ परेश बरुआ ने म्यांमार की सीमा से सटे दक्षिणी चीन के रुइली में नया ठिकाना बनाया है. उग्रवादी संगठन का ऑपरेशनल बेस और ट्रेनिंग कैंप म्यांमार के सागैंग सब-डिवीजन में है. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि म्यांमार के सेना के वरिष्ठ अधिकरी चीन पर घरेलू अशांति फैलाने के लिए अतिवादी समूहों को धन-बल की मदद देने का आरोप लगा चुके हैं. 

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20 उग्रवादी संगठन पूर्वोत्तर में सक्रिय
ऐसे में चीन के साथ सीमा पर जारी तनाव के बीच केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंसियों ने पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों पर फोकस बढ़ा दिया है. शांति वार्ताओं के साथ उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है. इस समय करीब 20 उग्रवादी संगठन पूर्वोत्तर में सक्रिय हैं. खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि चीन की मदद से उग्रवादी संगठन नए सिरे से गतिविधि शुरू कर सकते हैं. सूत्रों ने कहा, पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश में असम राइफल्स के जवान की हत्या में एक उग्रवादी गुट का नाम आने के बाद से एजेंसियां अलग-अलग पहलू खंगाल रही हैं. 

चीन दे रहा है शह
इस हमले के लिए नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम इसाक मुइवा द्वारा किया गया था. सूत्रों का कहना है कि चीनी पीएलए पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवादी गुटों को शह दे सकता है. पहले भी एनएससीएन-आईएम का लंबे समय तक चीनी राज्यों के नेताओं से संबंध रहा है. 1975 में भारत सरकार और नागा नेशनल काउंसिल के बीच शिलॉन्ग समझौते का एसएस खापलांग और थिंगालेंग शिवा जैसे नेताओं ने विरोध किया था, जो तब चाइना रिटर्न गैंग कहलाते थे.

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चीन से संबंध रखते आए हैं उग्रवादी
1980 में खापलांग और मुइवा ने मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) का गठन किया. आठ साल बाद 1988 में इसाक मुइवा ने चिशी स्वू के साथ एनएससीएन (आई-एम) गुट का गठन किया, जबकि खापलांग ने अपने गुट को एनएससीएन (के) नाम दिया. अब उग्रवादी गुटों की स्थिति में काफी बदलाव आया है. स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है, लेकिन एजेंसियां कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहतीं।

केंद्र की नजर सीमा विवाद पर भी
असम-मिजोरम सहित पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में सीमा विवाद को भी जल्द हल करने का प्रयास हो रहा है. ताकि इसका फायदा उठाने की कोशिश न हो. फिलहाल एनएससीएन (आई-एम) (वर्तमान में नागा मुद्दे के समाधान के लिए सरकार के साथ बातचीत कर रहा) का कहना है कि उसका चीनी सरकार से कोई संबंध नहीं है. एनएससीएन (आई-एम) के सह-संस्थापक चिशी स्वू ने आखिरी बार 2009 के अंत तक बीजिंग की एक शांति यात्रा की थी. उनकी 2016 में मृत्यु हो गई.

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