भारत-चीन (India-China) के बीच चल रहा सीमा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. लद्दाख (Ladakh) की गलवान घाटी में दोनों ओर से सैनिकों में हिंसक झड़प हुई हैं, जिसमें भारत के अधिकारी और दो जवान शहीद हो गए हैं. तब यह घटना हुई है जब दोनों देशों के बीच समझौते की कोशिश चल रही है. मई में चीन से लद्दाख में यह विवाद शुरू हुआ था, जबकि चीनी सैनिकों ने भारत के सड़क निर्माण का विरोध किया. इसके बाद से दोनों सेनाओं के बीच एलएसी पर तनाव बरकरार है. लद्दाख पर भारत की तैयारी से चीन बौखला हुआ है.
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डोकलाम में वर्ष 2017 में 73 दिनों तक चले गतिरोध के बाद चीन को बैकफ़ुट पर जाना पड़ा था, जिससे डोकलाम में सड़क बनाने के उसके मनसूबे पर पानी फिर गया था. चीन अपनी इस हार को भुला नहीं पाया है. कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और लद्दाख से जम्मू-कश्मीर को अलग करने से चीन बौखलाया हुआ है. हालांकि, तत्काल चीन ने कोई कारवाई नहीं की थी, लेकिन उसी समय चीन के आधिकारिक मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत के इस कदम का भरपूर विरोध किया था.
लद्दाख में चीन के बदली चाल का तत्कालीन कारण भारत का सीमावर्ती इलाकों में सड़क, डिफेंस फैसेलिटी और डिफेंस-फोर्टिफिकेशन भी बड़ी वजह है. चीन को ऐसा लगता है कि अमेरिका के साथ मिलकर भारत चीन को घेरना चाहता है. यही कारण है कि एक तरफ चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान को उकसा रहा है तो दूसरी तरफ से भारत को खुद घेरने की तैयारी कर रहा है.
भारत की ये है तैयारी
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में चीन से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानी एलएसी पर 73 स्ट्रेटेजिक रोड यानी सामरिक महत्व की सड़कें बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया था. इन सामरिक सड़कों के बनने से सैनिकों की गतिविधि काफी तेज हो गई हैं, क्योंकि अब सैनिक गाड़ियों से एलएसी तक पहुंच सकते हैं, जबकि वहां तक पहले पैदल पहुंचना पड़ता था. विवादित एलएसी वाले इलाके तक में अब भारतीय सैनिक गाड़ियों से पेट्रोलिंग करते हैं. वहीं, काफी पहले से चीनी सैनिक विवादित एलएसी पर अपनी गाड़ियों में पेट्रोलिंग करते रहे हैं.
चीन लद्दाख में डीएसडीबीओ रोड बनने से बेहद बौखला गया है. बेहद नामुमिकन से लगने वाली इस 255 किमी लंबी दुरबुक-श्योक-डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) रोड के बनने से सामरिक महत्व का काराकोरम पास भी भारतीय सेना की जद में आ गया है. इस सड़क के बनने से पूर्वी लद्दाख की सीमाओं की कनेक्टेविटी काफी बढ़ गई है. काराकोरम पास के बेहद करीब ही है शषगम-घाटी जो 1962 के युद्ध के एक साल बाद ही पाकिस्तान ने चीन को सौंप दी थी.
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इस सड़क के आसपास भारतीय सेना ने अपने डिफेंस-फैसेलिटी यानी पक्के बंकर और बैरक तक बना लिए हैं. श्योक नदी से मिलने वाली गैलवान नदी पर भी भारतीय सेना ने पुल बनाने का प्रयास किया तो यहां दोनों देशों के सैनिकों में झड़प हो गई. इसके बाद से चीनी सेना गैलवान घाटी में तंबू गाड़कर बैठ गई. भारतीय सेना ने भी जवाबी कारवाई करते हुए अपना कैंप यहां लगा लिया है. हाल सालों में भारतीय सेना ने एलएसी पर डिफेंस-फोर्टिफिकेशन का काम काफी तेजी से किया है. दुनिया के सबसे उंचाई वाले इलाकों में टैंकों की ब्रिगेड को तैनात कर दिया है. फिर चाहे वो लद्दाख हो या फिर उत्तरी सिक्किम.
लद्दाख में दुनिया की दूसरी सबसे उंची सड़क और चांगला-पास (करीब 17 हजार फीट की उंचाई) से टैंकों को पार कराकर पैंगोंग-त्सो लेक के बेहद करीब तैनात कर दिया है. यहां तक टैंकों को पहुंचाने के लिए भारत ने न केवल सड़कों को जाल बिछाया, बल्कि रास्ते में पड़ने वाले नदी-नालों तक पर ऐसे ब्रिज तैयार किए जो टैंकों के भार को उठा सकते थे. उत्तरी सिक्किम में भारतीय सेना ने टैंकों की एक ब्रिगेड तैनात कर दी है और चीन को कानों-कान खबर तक नहीं लगी. अभी तक चीन को भारत के टैंक-ब्रिगेड की लोकेशन भी ठीक-ठीक नहीं पता है.
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भारत ने टैंकों के अलावा बोफोर्स तोपों को भी चीन सीमा पर तैनात कर दिया है. ये तोपें लद्दाख से लेकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक में तैनात हैं. पिछले कुछ सालों में भारत ने जो अमेरिका से अल्ट्रा-लाइट होव्तिजर, एम-777 तोपें ली हैं वे खास तौर पर चीन सीमा पर तैनात करने के लिए ही ली गई थी और उन्हें तैनात 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर भी कर दिया गया है. सितबंर 2019 में पूर्व लद्दाख में भारतीय सेना ने दुनिया को चांगथांग प्रहार एक्सरसाइज कर बता दिया कि अब चीन सीमा पर सिर्फ इंफेंट्री यूनिट्स ही नहीं बल्कि टैंक, तोप, यूएवी और बिहाइंड द एनेमी लाइंस की युद्धकला में माहिर, स्पेशल फोर्सेज़ के कमांडो भी तैनात हैं. इस एक्सरसाइज से चीन में खलबली मची हुई है.