मोदी सरकार की स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत नीति से सदमे में चीन, अब हिंदी-चीनी भाई भाई का अलाप रहा राग

महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि करोना काल में अब स्वदेशी और आत्मनिर्भरता से भारत का कायापलट किया जाएगा. अगर इस बात से सबसे ज्यादा आहत कोई देश है तो वह चाइना है.

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Deepak Pandey
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पीएम नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग( Photo Credit : फाइल फोटो)

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महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि करोना काल में अब स्वदेशी और आत्मनिर्भरता से भारत का कायापलट किया जाएगा. अगर इस बात से सबसे ज्यादा आहत कोई देश है तो वह मुल्क है पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना. यही वजह है कि जब से देश में करोना संक्रमण ने दस्तक दी, तब से चाइनीस राजनयिकों के लेख अंग्रेजी अखबारों में ज्यादा नजर आने लगे हैं. इसके जरिये कभी चीन वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ता हुआ नजर आता है तो कभी ड्रैगन और हाथी की दोस्ती कराता है और कभी हिंदी-चीनी भाई भाई के पुराने राग के साथ भारत सरकार की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश लगा है.

जब मोदी सरकार ने भारत के साथ साझा सीमा रखने वाले देशों के एफडीआई पर अंकुश लगाया, तभी से चीन चौकस हो गया था. उसे इस बात का अंदाजा था कि अब हिंदुस्तान में सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा. लिहाजा भारत के लोकतंत्र को ही उसके खिलाफ हथियार बनाने की कोशिश की गई.

हिंदुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, यहां अभिव्यक्ति की आजादी विदेशी राजनयिकों को भी है और यहां फ्री प्रेस के जरिए वह अपना विचार रख सकते हैं. इसका फायदा उठाकर भारत चीन संबंधों के 70 साल पूरे होने पर चीन ने फुल पेज विज्ञापन दिए और अपने राजनयिकों के जरिए भारत के जनमानस में चीन की छवि को सुधारने की कोशिश भी की है.

चीनी राजनयिक, चीनी अधिकारी, चीनी लेखक भारतीय अखबारों में और खासतौर पर अंग्रेजी माध्यम के अखबारों में अभिव्यक्ति की आजादी की छूट के साथ लेखन कर सकते हैं, पर यह अधिकार भारतीय राजनयिकों को बीजिंग में हासिल नहीं है. चीन के अखबारों में भारतीय राजनयिक अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर या पाकिस्तान पर लेख नहीं लिख सकते हैं, क्योंकि चीन में तानाशाही है और हिंदुस्तान में जम्हूरियत.

इसी का फायदा उठाकर चीन की चालाक कोशिश है कि अखबारों के जरिए भारतीय जनमानस में हिंदी चीनी भाई भाई का राग उसी तरह से गाया जाए जैसे तिब्बत को हथियाते समय, 1962 की जंग से पहले चीन गाया करता था. पर पड़ोसी ड्रैगन को याद रखना होगा यह माओ का मुल्क नहीं, गांधी का भारत है, जिसके स्वदेशी अभियान ने अंग्रेजी वस्तु की होली जला दी थी तो चीन की चीजें किस हद तक टिक पाएगी

  • एक अप्रैल को भारत और चीन के राजनयिक रिश्ते 70 साल पूरे होने पर चीन की तरफ से इस अखबार में पूरे एक पृष्ठ का विज्ञापन दिया गया. जिसकी जानकारी बाद में चीनी एम्बेसी के द्वारा खुद उसकी वेबसाइट पर दी गई थी.
  • 29 फरवरी को एक अखबार में विज्ञापन देते हुए चीन द्वारा वन बेल्ट वन रोड के साथ इसे हेल्थ रोड के रूप में विकसित करने और भारत को इसमें शामिल होने की बातें कही गईं.
  • 30 अप्रैल को मीडिया में प्रकाशित आर्टिकल में चीनी राजनयिकों ने कहा कि चीन के सहयोग और चीनी सामान के जरिए वह भारत की मदद करोना संक्रमण में करने के लिए तैयार है, जबकि उसके कुछ ही दिन के बाद राजस्थान में चीन के रैपर टेस्टिंग किट में काफी समस्या आई थी.
  • दो अप्रैल को भारतीय मीडिया में चीन में हिंदी-चीनी भाई भाई वाली रणनीति के तहत ड्रैगन और भारतीय हाथी की दोस्ती को दिखाया था. उसकी चंद ही दिनों बाद लद्दाख क्षेत्र में भारत और चीनी सेना एक दूसरे के सामने विवाद के तहत नजर आई थी.
  • छह अप्रैल को भारतीय मीडिया में दोनों देशों के रणनीतिक सहयोग से करोना के खिलाफ जंग की बात दोहराई गई.
  • एक मई को चीन की ओर से भारतीय मीडिया में विज्ञापन दिया गया.
  • आठ मई को भारतीय मीडिया में यह संपादकीय उस समय आया जब अमेरिका के नेतृत्व में ज्यादातर नाटो देश चीन की महान लैबोरेट्री पर करोना संक्रमण बनाने और लीक करने का आरोप लगा रहे थे, इसके जरिये भारतीय जनमानस में चीन की छवि को बेहतर बनाया जाए.

Source : Rahul Dabas

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