चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लगातार घुसपैठ की कोशिश में लगा है. पैंगोंग इलाके में पिछले करीब एक महीने से तनाव अपने चरम पर हैं. यहां दोनों देशों की सेनाएं न सिर्फ आमने-सामने हैं बल्कि दोनों देशों के बीच फायरिंग की. एक अधिकारी का कहना है कि देपसांग विवाद की पुरानी जगह है जिसे पेंगोंग झील, चुशूल, गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स और गलवान घाटी में इस वर्ष खुले संघर्ष के नए मोर्चों के साथ नहीं मिलाना चाहिए. दरअसल यह इलाका रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है.
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रक्षा विशेषज्ञों ने जताई आशंका
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने दूसरी जगहों पर मोर्चा इसलिए खोला हो ताकि वह कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण देपसॉन्ग से भारत का ध्यान भटका सके. चीनी सेना पिछले पांच महीनों से भारतीय सैनिकों को देपसॉन्ग में पारंपरिक पेट्रोलिंग पॉइंट्स 10, 11, 11A, 12 और 13 पर जाने से रोक रही है. सूत्रों का कहना है कि चीनी सेना का सैन्य दस्ता देपसांग में बॉटलनेक या वाई-जंक्शन पर लगातार कैंप कर रहा है. भारत का मानना है कि यहां से 18 किमी आगे तक अपनी सीमा में आती है. जानकारों का मानना है कि देपसागं को दक्षिण की तरफ विवाद की जगह से काट देने की फिराक में है। ऐसा हुआ तो पीएलओ को मनमर्जी करने की छूट मिल जाएगी.
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क्यों महत्वपूर्ण है देपसांग
देपसॉन्ग-दौलत बेग ओल्डी (DBO) सेक्टर उसके वेस्टर्न हाइवे G-219 के बिल्कुल करीब है जो तिब्बत को शिंजियांग से जोड़ता है. जानकारी के मुताबिक चीनी सेना ने यहां एलएसी के पास 12 हजार सैनिकों को टैंकों और आर्टिलरी गनों के साथ तैनात कर रखे हैं. मई महीने से भारत ने भी इस इलाके में दो अतिरिक्त सैन्य ब्रिगेड तैनात कर दिए जिनमें करीब छह हजार सैनिक हैं. भारत ने यहां टैंक और मेकनाइज्ड इन्फेंट्री रेजिमेंट्स की भी तैनाती की गई है. यहां से डीबीओ के साथ-साथ बेहद संवेदनशील काराकोरम दर्रे की पहुंच सुलभ है.
Source : News Nation Bureau