पिछले कुछ सालों में भारत ने चीन से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानी एलएसी पर 73 स्ट्रेटेजिक रोड यानी सामरिक महत्व की सड़कें बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया था. इन सामरिक सड़कों के बनने से सैनिकों की मूवमेंट काफी तेज हो गई है, क्योंकि अब सैनिक गाड़ियों से एलएसी तक पहुंच सकते हैं, जबकि पहले पैदल वहां तक पहुंचना पड़ता था.
विवादित एलएसी वाले इलाके तक में भारतीय सैनिक अब अपनी गाड़ियों से पेट्रोलिंग करते हैं, जबकि चीनी सैनिक काफी पहले से विवादित एलएसी पर अपनी गाड़ियों में पेट्रोलिंग करते रहे हैं. लद्दाख में डीएसडीबीओ रोड बनने से चीन बेहद बौखला गया है. बेहद नामुमिकन से लगने वाली इस 255 किलोमीटर लंबी दुरबुक-श्योक-डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) रोड के बनने से सामरिक महत्व का काराकोरम पास भी भारतीय सेना की जद में आ गया है.
इस सड़क के बनने से पूर्वी लद्दाख की सीमाओं की कनेक्टेविटी काफी बढ़ गई है. काराकोरम पास के बेहद करीब ही है शषगम घाटी है जो 1962 के युद्ध के एक साल बाद ही पाकिस्तान ने चीन को सौंप दी थी. इस सड़क के आसपास भारतीय सेना ने अपने डिफेंस-फैसेलिटी यानी पक्के बंकर और बैरक तक बना लिए हैं.
श्योक नदी से मिलने वाली गलवान नदी पर भी भारतीय सेना ने पुल बनाने की कोशिश की तो दोनों देशों के सैनिकों में यहां झड़प हो गई. इसके बाद से गलवान घाटी में चीनी सेना तंबू गाड़कर बैठ गई. जवाबी कारवाई करते हुए भारतीय सेना ने भी अपना कैंप यहां लगा लिया है.
हाल के सालों में भारतीय सेना ने एलएसी पर डिफेंस-फोर्टिफिकेशन का काम भी काफी तेजी से किया है. इसके लिए दुनिया के सबसे उंचाई वाले इलाकों में टैंकों की ब्रिगेड को तैनात कर दिया है. फिर चाहे वो लद्दाख हो या फिर उत्तरी सिक्किम.
लद्दाख में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची सड़क चांगला पास (करीब 17 हजार फीट की उंचाई) से टैंकों को पार कराकर पैंगोंग-त्सो लेक के बेहद करीब तैनात कर दिया है. टैंकों को यहां तक पहुंचाने के लिए भारत ने न केवल सड़कों का जाल बिछाया, बल्कि रास्ते में पड़ने वाले नदी-नालों तक पर ऐसे ब्रिज तैयार किए जो टैंकों के भार को उठा सकते थे.
उत्तरी सिक्किम में भी भारतीय सेना ने टैंकों की पूरी एक ब्रिगेड तैनात कर दी है और चीन को कानों-कान खबर तक नहीं लगी. चीन को अभी तक भारत के टैंक ब्रिगेड की लोकेशन भी ठीक से पता नहीं है. टैंकों के अलावा भारत ने बोफोर्स तोपों को भी चीन सीमा पर तैनात कर दिया है. ये तोपें लद्दाख से लेकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक में तैनात हैं.
पिछले कुछ सालों में भारत ने अमेरिका से अल्ट्रालाइट होव्तिजर, एम-777 तोपें जो ली हैं वे खास तौर से चीन सीमा पर तैनात करने के लिए ही ली गई थी और उन्हें तैनात भी 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर कर दिया गया है. सितबंर 2019 में पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना ने चांगथांग प्रहार एक्सरसाइज कर दुनिया को बता दिया कि चीन सीमा पर अब सिर्फ इंफेंट्री यूनिट्स ही नहीं बल्कि टैंक, तोप, यूएवी और बिहाइंड द एनेमी लाइंस की युद्धकला में माहिर, स्पेशल फोर्सेज़ के कमांडो भी तैनात हैं. इस एक्सरसाइज से चीन में खलबली मची लाजमी थी.
इस बार क्यों बौखलाया हुआ है चीन , ये वजहें हो सकती हैं?
2017 में डोकलाम में 73 दिनों तक चले गतिरोध के बाद चीन को बैकफ़ुट पर जाना पड़ा था और डोकलाम में सड़क बनाने के उसके मनसूबे पर पानी फिर गया था. चीन अपनी इस हार को भुला नहीं है. वहीं, कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने और लद्दाख से जम्मू-कश्मीर को अलग करने से चीन बौखलाया हुआ है.
हालांकि, चीन ने तत्काल कोई कारवाई नहीं की थी, लेकिन चीन के आधिकारिक मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने उसी समय भारत के इस कदम का भरपूर विरोध किया था. लद्दाख में चीन के बदली चाल का तत्कालीन कारण भारत का सीमावर्ती इलाकों में सड़क, डिफेंस फैसेलिटी और डिफेंस-फोर्टिफिकेशन भी बड़ी वजह है.
चीन को ऐसा लगता है कि भारत अमेरिका के साथ मिलकर चीन को घेरना चाहता है. यही वजह है कि चीन एक तरफ पाकिस्तान को भारत के खिलाफ उकसा रहा है और दूसरी तरफ से खुद भारत को घेरने की तैयारी कर रहा है.
Source : News Nation Bureau