नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के खिलाफ असम में लगातार प्रदर्शन जारी है. काजीरंगा विश्वविद्यालय की ओर जाने वाली सड़क को बाधित करने के प्रयास में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल को वहां दीक्षांत समारोह के लिए जाना था. कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) और जातियताबंदी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) के 100 से प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की और काले झंडे दिखाए.
हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस ने 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया. कार्यक्रम समाप्त होने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. कार्बी आंगलांग जिले में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग-36 को कुछ घंटों तक बाधित रखा. गोलपाड़ा के दुधोनी में राष्ट्रीय राजमार्ग 37 पर जोगी और कलिता समुदाय के लोगों ने विधेयक की प्रतियां जलायी.
बता दें कि इससे पहले नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पर टिप्पणी करने के कारण के असम में तीन लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है. 7 जनवरी को विरोध प्रदर्शन करने के दौरान इस बिल पर टिप्पणी करने के कारण असम पुलिस ने साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हीरेन गोहैन, आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई और पत्रकार मंजीत महंता के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया है.
बता दें कि 7 जनवरी को लोकसभा में पारित हो चुके नागरिकता संशोधन बिल को लेकर सरकार के खिलाफ राज्य में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं और प्रशासन ने राज्य के कई इलाकों में प्रतिबंध लगा रखे हैं.
राजनाथ सिंह बोले ग़लतफ़हमी फैलाई जा रही है
वहीं केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस बिल के लोकसभा में पारित होने को लेकर राज्यसभा में कहा कि विधेयक के बारे में 'गलतफहमी' फैलाई जा रही है. राजनाथ ने कहा कि विधेयक असम या पूर्वोत्तर के राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा.
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
लोक यह विधेयक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत पलायन कर आए हैं, या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है.
लगातार हो रहा है विधेयक का विरोध
असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो.
नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.
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कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.
Source : News Nation Bureau