सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने सीबीआई (CBI) और पुलिस की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कई मामलों की जांच से जुड़ी कार्यशैली से साख और विश्वसनीयता में कमी आती है. इसके साथ ही उन्होंने नसीहत देते हुए कहा कि राजनीतिक प्रतिनिधि और सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन एक संस्था के रूप में सीबीआई स्थायी है इसे अभेद्य और स्वतंत्र रहना चाहिए. रमना (CJI NV Ramana) ने आगे कहा कि पुलिस के लिए सामाजिक वैधता और जनता के विश्वास को फिर से अर्जित करना समय की मांग है. उन्होंने 'लोकतंत्र: जांच एजेंसियों की भूमिका और उत्तरदायित्व' पर सीबीआई के 19वें डीपी कोहली स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम के अवसर पर यह टिप्पणी की.
मुसीबत मोल लेने के बारे में पहले ही चेताया
व्याख्यान की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश रमना ने कहा, 'जब सीबीआई निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल मुझे इस व्याख्यान के लिए आमंत्रित करने आए, तो मैंने उनसे बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि मुझे भारत में पुलिस के कामकाज के बारे में कुछ आलोचनात्मक राय व्यक्त करनी पड़ सकती है. आशा है कि उन्होंने मुझे बुलाकर मुसीबत को तो नहीं बुलाया है.' उन्होंने कहा कि राजनीतिक आकाओं द्वारा पुलिस का दुरुपयोग कोई नई बात या विशेषता नहीं है. अंग्रेजों ने वर्चस्व, निगरानी और जबरदस्ती तैनात की, जो भारतीय पुलिस की स्थायी विशेषता बनी हुई है.
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बहुलवादी समाज के लिए लोकतंत्र ही उपयुक्त
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लोकतंत्र के साथ हमारे अब तक के अनुभव को देखते हुए यह संदेह से परे साबित होता है कि लोकतंत्र हमारे जैसे बहुलवादी समाज के लिए सबसे उपयुक्त है. उन्होंने कहा, 'तानाशाही शासन के माध्यम से हमारी समृद्ध विविधता को कायम नहीं रखा जा सकता है. लोकतंत्र के माध्यम से ही हमारी समृद्ध संस्कृति, विरासत, विविधता और बहुलवाद को कायम रखा और मजबूत किया जा सकता है.' उन्होंने कहा, 'जब हमारी स्वतंत्रता को छीनने का कोई प्रयास किया गया है, तो हमारे सतर्क नागरिकों ने निरंकुश लोगों से सत्ता वापस लेने में संकोच नहीं किया.'
पुलिस और जांच निकाय समाज का विश्वास फिर हासिल करें
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने कहा, 'इसलिए, यह आवश्यक है कि पुलिस और जांच निकायों सहित सभी संस्थान लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखें और उन्हें मजबूत करें. उन्हें किसी भी सत्तावादी प्रवृत्ति को पनपने नहीं देना चाहिए.' प्रधान न्यायाधीश रमना ने कहा कि समय के साथ, हर प्रतिष्ठित संस्थान की तरह, सीबीआई भी गहरी सार्वजनिक जांच के दायरे में आ गई है और इसके कार्यों और निष्क्रियता ने कुछ मामलों में इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा, 'सामाजिक वैधता और जनता के विश्वास को फिर से हासिल करना समय की मांग है. इसे हासिल करने के लिए पहला कदम राजनीतिक कार्यकारिणी के साथ गठजोड़ को तोड़ना है.'
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स्वतंत्र अम्ब्रेला इंस्टीट्यूशन की वकालत
यह देखते हुए कि इन दिनों एक ही घटना की कई एजेंसियों द्वारा जांच की जाती है, जिससे अक्सर सबूत कमजोर पड़ जाते हैं. बयानों में विरोधाभास और निर्दोषों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है, उन्होंने कहा, 'एक स्वतंत्र अम्ब्रेला इंस्टीट्यूशन के निर्माण की तत्काल आवश्यकता है, ताकि सीबीआई, एसएफआईओ, ईडी, आदि जैसी विभिन्न एजेंसियों को एक छत के नीचे लाया जा सके. इस निकाय को एक कानून के तहत बनाया जाना आवश्यक है, जो स्पष्ट रूप से अपनी शक्तियों, कार्यों और अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करता हो। इस तरह के कानून से बहुत आवश्यक विधायी निरीक्षण भी होगा.' उन्होंने कहा कि संगठन के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्राधिकरण की अध्यक्षता में होना अनिवार्य है, जिसे एक समिति द्वारा नियुक्त किया जाता है जो सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति करती है.
निष्ठा संविधान के प्रति हो व्यक्ति के लिए नहीं
उन्होंने कहा, 'यह संस्था को उत्पीड़न के एक उपकरण के रूप में दोषी ठहराए जाने से भी बचाएगा. एक बार एक घटना की सूचना मिलने के बाद, संगठन को यह तय करना चाहिए कि किस विशेष विंग को जांच करनी चाहिए.' प्रधान न्यायाधीश ने आगे कहा: 'आखिरकार, आपको याद रखना चाहिए कि आपकी निष्ठा संविधान और कानून के शासन के प्रति होनी चाहिए, न कि किसी व्यक्ति के प्रति. राजनीतिक कार्यपालिका समय के साथ बदल जाएगी, लेकिन आप एक संस्था के रूप में स्थायी हैं इसलिए आपको अभेद्य और स्वतंत्र रहना चाहिए. अपनी सेवा के लिए एकजुटता की शपथ लें. आपकी बिरादरी ही आपकी ताकत है.'
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राज्य और केंद्रीय एजेंसियों में हो समन्वय
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध होने चाहिए और सहयोग या समन्वय ही कुंजी है और आखिरकार, इन सभी संगठनों का लक्ष्य न्याय सुरक्षित करना है. उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए अभियोजन और जांच के लिए स्वायत्त विंग का भी सुझाव दिया.
HIGHLIGHTS
- डीपी कोहली स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी
- कहा-समय आ गया है कि सामाजिक वैधता और विश्वास हासिल करें
- एक स्वतंत्र अम्ब्रेला इंस्टीट्यूशन के निर्माण की जरूरत पर दिया जोर