भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने मौखिक रूप से कहा कि उन्होंने संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में नौकरशाहों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अत्याचार और शिकायतों की जांच के लिए एक पैनल बनाने के बारे में सोचा था. उन्होंने कहा मुझे इस दिशा में बहुत सारी आपत्तियां हैं, नौकरशाही, विशेष रूप से इस देश में पुलिस अधिकारी कैसे व्यवहार कर रहे हैं. सीजेआई ने कहा, मैं एक समय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में नौकरशाहों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अत्याचारों और शिकायतों की जांच के लिए एक स्थायी समिति बनाने के बारे में सोच रहा था. मैं इसे रिजर्व रखना चाहता हूं. अभी नहीं करना चाहता.
सीजेआई ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामले में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. मामले पर सुनवाई कर रही पीठ में सीजेआई के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल थे. पीठ छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिंदर पाल सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनके खिलाफ आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की गई है. उन पर राजद्रोह, जबरन वसूली और आय से अधिक संपत्ति के गंभीर आरोप हैं.
27 सितंबर को शीर्ष अदालत ने सिंह के वकील से कहा था कि उनके मुवक्किल हर मामले में गिरफ्तारी से सुरक्षा नहीं ले सकते हैं. पिछली सुनवाई में सीजेआई रमना ने कहा थी कि आप हर मामले में सुरक्षा नहीं ले सकते. आपने पैसा वसूलना शुरू कर दिया, क्योंकि आप सरकार के करीब हैं. यही होता है अगर आप सरकार के करीब हैं और इन चीजों को करते हैं तो आपको एक दिन वापस भुगतान करना होगा. जब आप सरकार के साथ अच्छे हैं, आप वसूली कर सकते हैं, लेकिन आपको ब्याज के साथ भुगतान करना होगा. प्रधान न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी कि इस तरह के पुलिस अधिकारियों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए, बल्कि उन्हें जेल में होना चाहिए.
26 अगस्त को शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति की ओर इशारा किया था, जहां पुलिस अधिकारी, सत्ता में पार्टी का साथ दे रहे होते हैं और बाद में जब एक और राजनीतिक व्यवस्था सत्ता में आती है तो उन्हें निशाना बनाया जाता है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा था, जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में होता है, तो पुलिस अधिकारी उसका साथ देते हैं, फिर जब कोई नई पार्टी सत्ता में आती है, तो सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करती है. यह एक नया चलन है, जिसे रोकने जाने की आवश्यकता है.
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष तीन विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गई हैं, जहां अदालत ने सिंह के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया. सिंह के खिलाफ राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा लिखित शिकायत के बाद मामला दर्ज किया गया था. उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है. उनके पास से कुछ दस्तावेज जब्त किए गए, जो सरकार के खिलाफ साजिश में उनके शामिल होने की ओर इशारा कर रहे थे.
HIGHLIGHTS
- शीर्ष अदालत के समक्ष तीन विशेष अनुमति याचिकाएं
- पुलिस अधिकारियों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए