आरोपी को दुष्कर्म पीड़िता से शादी का सुझाव कभी नहीं दिया: CJI

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को कहा कि 'आरोपी को रेप पीड़िता से शादी करने' संबंधी कथित सुझाव को लेकर मीडिया में जो खबरें आईं, या सामाजिक कार्यकर्ताओं के जो बयान सामने आए, वे सभी 'संदर्भ से परे' हैं.

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Deepak Pandey
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मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ( Photo Credit : फाइल फोटो)

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मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सोमवार को कहा कि 'आरोपी को रेप पीड़िता से शादी करने' संबंधी कथित सुझाव को लेकर मीडिया में जो खबरें आईं, या सामाजिक कार्यकर्ताओं के जो बयान सामने आए, वे सभी 'संदर्भ से परे' हैं. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि यह हमेशा महिलाओं को सर्वाधिक सम्मान और आदर देता है. बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल हैं. बहरहाल, पीठ ने कहा कि कोर्ट ने मामले के संदर्भ में आरोपी से केवल यह पूछा था कि क्या वह शिकायतकर्ता (पीड़िता) से शादी करेगा. कोर्ट ने उससे यह कभी भी नहीं कहा कि "आप जाइए और उससे शादी कर लीजिए.

मुख्य न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि मामले में अदालत की कार्यवाही को पूरी तरह से गलत रूप में पेश किया गया. गौरतलब है कि पीठ ने 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी. पीड़िता ने अधिवक्ता वीके बीजू के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और 26 माह के गर्भ को गिराने का अनुरोध किया था.

पिछले हफ्ते, नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी 23-वर्षीय शख्स की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान पीठ ने आरोपी से पूछा था कि क्या तुम उससे शादी करोगे? शादी करने के वादे से मुकरने के बाद लड़की ने आरोपी के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी. 5 फरवरी को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करते हुए लड़की के आवेदन की अनुमति दी.

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सोमवार को बीजू ने कहा कि वह पूरी तरह से उन रिपोटरें के खिलाफ हैं, जिसने अदालत की छवि को धूमिल किया. पीठ ने कहा कि अदालत महिलाओं को सबसे अधिक सम्मान देती है और यहां तक कि सुनवाई में कभी भी आरोपी को पीड़िता से शादी करने का सुझाव नहीं दिया.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के अनुसार अदालत को तथ्यों की खोज के लिए या किसी भी उद्देश्य के लिए कोई भी प्रश्न पूछना अनिवार्य है. मेहता ने कहा कि अदालत के बयानों को संदर्भ से बाहर कर दिया गया और समाज के एक वर्ग ने गलत तरीके से अदालत और न्यायाधीशों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमारे पास महिलाओं के लिए सर्वोच्च सम्मान है. हमारी प्रतिष्ठा बार के हाथों में है. सुप्रीम कोर्ट गर्भपात करवाने की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई जारी रखेगी.

Source : IANS

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