दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की रफ्तार बढ़ने के साथ-साथ भारतीय में मानसून का मौसम भी अनिश्चित सा हो गया है. वैज्ञानिकों ने पहले से ही इस बात की चेतावनी दी है कि वैश्विक तापमान (Global Temperature) में बढ़ोत्तरी के साथ मानसून की बारिश अभी और ज्यादा होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन भारत में मानसून की तबाही को और ज्यादा बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम कर रहा है. महाराष्ट्र और गोवा के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम की तबाही की बड़ी घटनाएं देखी गई हैं.
इन घटनाओं भयानक बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन की वजह से देश में सैकड़ों लोगों की जान चली गई. वहीं, पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों में रिकॉर्ड बारिश दर्ज होने के बाद 22 जुलाई से अब तक बाढ़ में फंसे हजारों लोगों को बचाया गया है. महाराष्ट्र में रिलीफ और रिहैबिलेशन विभाग (Relief and Rehabilitation Department) के अनुसार, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से लगभग 229,074 लोगों को निकाला गया है और 26 जुलाई तक कुल 164 लोगों की मौत हुई है. इसके अलावा, कुल 1028 गांव प्रभावित हुए हैं, जिनमें से रायगढ़ जिला सबसे ज्यादा बुरी स्थिति में है और इसके साथ ही, रत्नागिरी और सतारा जिले भी काफी प्रभावित हैं.
मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन (Meteorology and Climate Change) के अध्यक्ष जी पी शर्मा ने बताया कि, भारत अभी मानसून के मिड में भी नहीं पहुंचा है और पहली मानसूनी बारिश ने ही देश में काफी तबाही मचा दी है. मौसम के बदलते मिजाज की वजह से आए दिन बादल फटने की घटना, भूस्खलन, भारी बारिश चक्रवात और कई अन्य घटनाओं के रूप में देखा जा सकता है. इसके अलावा, पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (Potsdam Institute for Climate Impact Research) के एक अध्ययन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन भारत में मानसून को और अधिक तीव्र और विनाशकारी बना रहा है और हर डिग्री सेल्सियस के गर्म होने के साथ, मानसून की बारिश में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है.
एशिया ही नहीं यूरोप के देशों में भी है तबाही
आपको बता दें कि, केवल भारत में ही नहीं बल्कि यूरोप और चीन के कुछ हिस्सों में भी इन extreme weather की घटनाओं का अनुभव किया गया है. चीन और जर्मनी में भी तबाही की भयावह तस्वीरें देखते आए हैं, जो बताती हैं कि जलवायु परिवर्तन केवल एक विकासशील देश की समस्या नहीं है, बल्कि अब यह जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैंड जैसे औद्योगिक देशों को भी अपनी चपेट में ले रहा है. जिसकी चेतावनी आईपीसीसी के वैज्ञानिक पिछले कुछ वर्षों से दे रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन ने बदला चक्रवातों का स्वभाव
आपको बता देंं कि दुनिया भर में आने वाले चक्रवातों की संख्या और उनकी मारक क्षमता बढ़ने के पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग एक स्पष्ट वजह है. मौसम विज्ञानियों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान पूरी दुनिया में बढ़ रहा है. समुद्र सतह का तापमान बढ़ने से चक्रवात अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं. मिसाल के तौर पर अरब सागर में समुद्र सतह का तापमान 28-29 डिग्री तक रहता है लेकिन अभी ताउते तूफान के वक्त यह 31 डिग्री है. जलवायु विज्ञानियों के मुताबिक जैसे जैसे समुद्र गर्म होते जाएंगे वहां उठे कमजोर चक्रवात तेजी से शक्तिशाली और विनाशकारी रूप लेंगे. अम्फन, फानी और ओखी तूफानों से यह बात साबित हुई है. चक्रवात ताउते ने इस ट्रेंड पर मुहर लगाई है कि कम शक्तिशाली तूफान समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण शीघ्र ही ताकतवर चक्रवात बन जाते हैं. सबसे शक्तिशाली तूफानों की ताकत हर दशक में करीब 8 प्रतिशत बढ़ रही है.
Source : News Nation Bureau