कांग्रेस के नेता और नेपाल के शाही परिवार के साथ पारिवारिक संबंध रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री करण सिंह ने कहा है कि नेपाल द्वारा भारत के लिंपियाधुरा, लिपुलेक और कालापानी सहित जारी किए गए नए नक्शे और संविधान में शामिल करने के निर्णय से आने वाले दिनों में नेपाल को कोई लाभ नहीं होगा. करण सिंह ने कहा है कि नेपाल सरकार का ताजा फैसला आने वाले दिनों में नेपाल के पक्ष में नहीं होगा.
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करण सिंह ने कहा कि भारत में इसका कोई प्रभाव हो सकता है या नहीं, यह मुझे नहीं पता, लेकिन मुझे चिंता है कि इस नक्शा प्रकरण का परिणाम सुंदर देश में नेपाली लोगों के पक्ष में नहीं होगा. उन्होंने कहा कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दोनों देशों के बीच सैकड़ों साल पुराने सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को एक ऐसे बिंदु पर धकेल दिया है जिसे आसानी से हल नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच मौजूदा स्थिति को आने नहीं दिया जाना चाहिए था और विवाद के बावजूद इसे हल करने के लिए कोई पहल नहीं होना दुखद है. करण सिंह के वक्तव्य में कहा गया है कि नेपाल ने इस मुद्दे को पिछले नवंबर में उठाया था लेकिन हमने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया. हमने विदेश मंत्री स्तर पर या विदेश सचिव स्तर पर या प्रधानमंत्री स्तर पर तुरंत बातचीत शुरू कर देनी चाहिए. यह दोनों देशों के बीच एक कूटनीतिक विफलता का परिणाम है.
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गौरतलब है कि नेपाल में 2007 में हुए जनआंदोलन के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विशेष दूत के रूप में तत्कालीन राजा ज्ञानेन्द्र शाह से मिलने आए करण सिंह का नेपाल की राजनीति में एक विशेष स्थान है. 2015 में नेपाल के दक्षिणी सीमा में हुए छह महीने के लम्बे आंदोलन के दौरान जब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्य सभा में इस मुद्दे पर चर्चा कराई थी उस वक्त भी करण सिंह ने के पी ओली की जमकर आलोचना की थी.
Source : News Nation Bureau