जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में 4G इंटरनेट बहाली को लेकर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक काउंटर एफिडेविट (प्रति-हलफनामा) दाखिल करने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक एनजीओ ने केंद्रशासित प्रदेश में 4G स्पीड इंटरनेट पर प्रतिबंधों की समीक्षा के लिए एक विशेष समिति का गठन न करने के मामले में अवमानना याचिका दायर की थी.
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न्यायमूर्ति एन वी रमण की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र से कहा कि वह क्षेत्र में 4G इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने के आदेशों की समीक्षा से संबंधित केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा लिए गए फैसले के संबंध में एक हलफनामा दायर करे. हालांकि, शीर्ष अदालत ने अवमानना याचिका पर कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया.
केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कोर्ट को सूचित किया कि कोर्ट के आदेश के मुताबिक स्पेशल कमेटी का गठन हो गया है, लिहाजा अवमानना याचिका का कोई औचित्य नहीं बनता. अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने अदालत के सामने कहा कि कोई अवमानना नहीं की गई है, क्योंकि विशेष समिति का गठन पहले ही किया जा चुका है. कोर्ट ने सवाल किया कि ये जानकारी पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं है? शीर्ष अदालत ने केंद्र को एक प्रति-हलफनामे में सब कुछ बताने और एक सप्ताह के भीतर दाखिल करने को कहा.
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याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील हुजेफा अहमदी की ने कहा कि सरकार 4G सर्विस लगातार निलंबित रखने के खिलाफ दिए ज्ञापन का जवाब नहीं दे रही है. मौजूदा 2G सर्विस के चलते बच्चों की पढ़ाई, कारोबार में दिक्कत आ रही है. इस पर अटॉनी जनरल ने कहा कि सूबे में आतकंवादी गतिविधियों के चलते सरकार अभी भी 2G सर्विस रखने के लिए बाध्य हुई है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील हुजेफा अहमदी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ख़ुद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने इंटरव्यू में कहा है कि आर्टिकल 370 के निष्प्रभावी होने के बाद राज्य में 1990 के बाद आंतकवाद सबसे निचले स्तर पर है. जम्मू कश्मीर के लिए वार्ताकार नियुक्त किए गए राममाधव ने अपने लेख में कहा है कि अब जम्मू कश्मीर में प्रतिबंधों को हटाने का समय आ गया है.
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