पर्यावरण एवं वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को उत्सर्जन के स्तर की जांच की जरूरत पर जोर दिया और इसे जलवायु परिवर्तन की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा, आज हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन अन्य सभी पर्यावरणीय चुनौतियों में सबसे महत्वपूर्ण है. संचयी उत्सर्जन पर नियंत्रण के बिना हम अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ सफलता भले ही हासिल कर लें, पर स्थायी मूल्य को बचाकर नहीं रख पाएंगे. यादव ने सीओपी27 के मौके पर यूएनएफसीसीसी पवेलियन में आयोजित छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) में बुनियादी ढांचे पर एक सत्र को संबोधित करते हुए यह बात कही.
उन्होंने कहा, हम मानवता के ग्रह पृथ्वी की रक्षा के आह्वान में सभी वैश्विक पर्यावरणीय चिंताओं से लड़ना जारी रखेंगे. लेकिन ग्लोबल वार्मिग हमें चेतावनी भी देती है कि इक्विटी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, किसी को पीछे नहीं छोड़ते, सफलता की कुंजी रखते हैं, जहां उन सबसे भाग्यशाली लोगों को नेतृत्व करना चाहिए कोई भी देश यह यात्रा अकेले नहीं कर सकता. हमें अगली आधी सदी के लिए सही समझ, सही विचार और सहयोगी कार्रवाई तय करने की जरूरत है.
मंत्री ने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन पर घरेलू कार्रवाई और बहुपक्षीय सहयोग दोनों के लिए प्रतिबद्ध है.
यादव के अलावा, मॉरीशस सरकार में पर्यावरण, ठोस अपशिष्ट और जलवायु परिवर्तन मंत्री काव्यादास रामानो, जमैका सरकार के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन मंत्रालय से सीनेटर मैथ्यू समुदा और एओएसआईएस और फिजी के प्रतिनिधियों ने भी सत्र में भाग लिया.
यादव ने आईपीसीसी की एआर6 रिपोर्ट का हवाला देते हुए सभा को सूचित किया कि वार्मिग का सीओ2 के कुल उत्सर्जन में योगदान से सीधा आनुपातिक संबंध है. सभी सीओ2 उत्सर्जन वार्मिग में समान रूप से योगदान करते हैं.
उन्होंने कहा, आईपीसीसी रिपोर्ट और अन्य सभी सर्वोत्तम उपलब्ध विज्ञान भी दिखाते हैं कि भारत उन देशों में से है जो जलवायु परिवर्तन के लिए उच्च जोखिम वाले हैं. इसलिए, हम द्वीप राज्यों और अन्य की स्थिति के प्रति बहुत सहानुभूति रखते हैं. भारत, 7,500 किलोमीटर से अधिक समुद्र तट और अधिक के साथ आसपास के समुद्रों में 1,000 से अधिक द्वीप, और जीवन और आजीविका के लिए समुद्र पर निर्भर एक बड़ी तटीय आबादी भी वैश्विक स्तर पर एक अत्यधिक असुरक्षित राष्ट्र है. उदाहरण के लिए, 1995-2020 के बीच भारत ने जलवायु आपदा की 1,058 घटनाएं दर्ज कीं.
मंत्री ने आगे बताया कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पर विचार करते हुए तुलनात्मक पैमाने के लिए भारत का उत्सर्जन आज भी वैश्विक औसत का लगभग एक-तिहाई है. यदि पूरी दुनिया भारत के समान प्रति व्यक्ति स्तर पर उत्सर्जन करती है, तो उपलब्ध विज्ञान बताता है कि कोई जलवायु संकट नहीं होगा.
सितंबर 2019 में न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) के लिए गठबंधन का शुभारंभ किया था. इसका उद्देश्य सतत विकास के समर्थन में जलवायु और आपदा जोखिमों के लिए नई और मौजूदा बुनियादी ढांचा प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ावा देना है.
Source : IANS