कोरोना वायरस (corona Virus) से जंग के तहत देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) के लिए सबसे बड़ा खतरा देश के विभिन्न इलाकों में स्थित मस्जिदों-मदरसों में छिपे 'कोरोना बम' साबित हो रहे हैं. दिल्ली से लेकर देवबंद (Deoband) तो हिंदी पट्टी के कई राज्यों में ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जहां कोरोना प्रभावित देशों से आए मु्स्लिम प्रचारक (Muslim Preachers) रह रहे हैं, जिनके बारे में प्रशासन को कतई कोई सूचना नहीं है. ऐसे ही एक मामले में जानकारी मिलने पर दिल्ली की निजामुद्दीन से 70 के आसपास संदिग्ध मरीजों को लोकनायक अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इनमें से कई सऊदी अरब, मलेशिया और इंडोनेशिया से आए थे. इसी कड़ी में एशिया (Asia) के सबसे बड़े मदरसे दारुल उलूम देवबंद के भी ढेरों छात्र निगरानी में हैं. ये सभी छात्र मलेशिया-इंडोनेशिया से आए तबलीगी जमात के 40 प्रचारकों के संपर्क में आए थे.
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घर वापसी के तलबगारों ने भी बढ़ाया खतरा
इस बीच दिल्ली और अन्य प्रदेशों से घर वापसी के लिए उमड़ी भीड़ ने लॉकडाउन की उद्देश्य प्राप्ति पर गंभीर सवालिया निशान लगा दिया है. दसियों हजार की उमड़ी भीड़ ने केंद्र समेत कई राज्यों की पेशानी पर बल डाल दिए हैं. हजारों बसों में भर-भर कर देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे गए इन मजदूरों और विद्यार्थियों को स्थानीय लोगों से घुलने-मिलने से रोकना एक बड़ी चुनौती और सिरदर्द साबित होने वाला है. इसके इतर दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में स्थित मस्जिदों से सूचना के बाद गए 'सक्रिय कोरोना बम' कोढ़ में खाज वाली स्थिति पैदा कर रहे हैं.
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दिल्ली की निजामुद्दीन मस्जिद में रह रहे थे बाहर से आए प्रचारक
रविवार देर रात ही दिल्ली के स्वास्थ्य महकमे और पुलिस-प्रशासन ने निजामुद्दीन मस्जिद में एक जानकारी के आधार पर पूछताछ की तो वहां बाहर से आए कुछ लोगों के बारे में पता चला. सऊदी अरब, मलेशिया और इंडोनेशिया से आए इन लोगों के बारे में स्थानीय प्रशासन को कोई जानकारी नहीं थी. वह भी तब, जब केंद्र सरकार का स्पष्ट आदेश है कि बाहर से आए किसी भी व्यक्ति को 14 दिनों तक अलग-थलग रखा जाएगा. इन लोगों को डीटीसी की बस से आरएमएल अस्पताल ले जाया गया. हालांकि वहां आइसोलेशन वार्ड फुल होने पर उन्हें बाद में लोकनायक अस्पताल भेजा गया. ये सभी संदिग्ध लोग जमात के लिए यहां आए थे और अब उन्हें आइसोलेशन वार्ड में रखा गया है.
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देवबंद तक पहुंचा खतरा
इसी तरह एक बड़ा संदेह अब यह उभर रहा है कि क्या कोरोना वायरस का संक्रमण मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान देवबंद तक पहुंच गया है? यह सवाल इसलिए क्योंकि एशिया के सबसे बड़े मदरसे के रूप में पहचान रखने वाले दारुल उलूम देवबंद के बहुत से छात्र भी निगरानी में हैं. ये लोग तबलीगी जमात के प्रचारकों के संपर्क में आए थे. देशभर के करीब ऐसे 500 से अधिक लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के संदेह में निगरानी में रखा गया है. निगरानी के दायरे में आए लोग 2 मार्च से 20 मार्च के बीच मलेशिया और इंडोनेशिया से आने वाले 40 इस्लामिक उपदेशकों के एक समूह के सम्पर्क में आए थे. इनमें से अधिकतर ऐसे परिवार और स्टूडेंट्स हैं जो देवबंद के मशहूर मदरसे में पढ़ते हैं और उसके पास की मोहम्मदी मस्जिद के आसपास रहते हैं. माना जा रहा है कि इस्लामिक उपदेशकों के इस ग्रुप ने 9 मार्च और 11 मार्च के बीच देवबंद की यात्रा की थी.
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कश्मीरी बुजुर्ग की मौत से सामने आई चेन
इस मामले में खुलासा कश्मीर घाटी में 65 साल के एक बुजुर्ग की कोरोना की वजह से हुई मौत के बाद हुआ. वह बुजुर्ग श्रीनगर में रहते थे और उन्होंने बीते दिनों दिल्ली, उत्तर प्रदेश के साथ देशभर के अलग-अलग धार्मिक समारोहों में हिस्सा लिया था. सहारनपुर के कमिश्नर संजय कुमार ने कहा कि देवबंद की उस मस्जिद को सील कर दिया गया है और उसके अलावा मस्जिद के आसपास के एक किमी में स्थित सभी मकानों, दुकानों और स्कूलों को निगरानी में ले लिया गया है. उन्होंने कहा, 'हमें पता चला है कि जिस कश्मीरी मरीज की मौत हुई है, उसने यहां मस्जिद में हुए एक कार्यक्रम में शिरकत की थी. इस कार्यक्रम में बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया था, जिसमें से 10 की पहचान हम कर चुके हैं. पहले फेज में लोगों से बात करने के बाद हमने 11 संभावितों का टेस्ट ले लिया है. उन्हें अभी भी सहारनपुर प्रशासन के तहत क्वारंटाइन में रखा गया है, जहां वे अगले 2 हफ्ते तक रखे जाएंगे. फिलहाल सभी शुरुआती टेस्ट नेगेटिव पाए गए हैं.'
HIGHLIGHTS
- लॉकडाउन को सबसे बड़ा खतरा मस्जिदों-मदरसों में छिपे 'कोरोना बम'.
- इस्लामिक उपदेशकों ने 9 मार्च और 11 मार्च के बीच देवबंद की यात्रा की.
- 500 से अधिक कोरोना वायरस से संक्रमित होने के संदेह में निगरानी में.