कोरोना से ठीक होने के बाद भी एक साल तक लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. लैंसेट जनरल की स्टडी में ये बात कही गई है. चीन के नेशनल सेंटर फॉर रेस्पिरेट्री मेडिसिन की रिसर्च के मुताबिक, कोरोना से अस्पताल में भर्ती होने वाले आधे मरीजों में 12 महीने बाद भी कम से कम एक लक्षण अभी भी हैं. द लैंसेट फ्राइडे में पब्लिश हुई स्टडी में कहा गया है कि कोरोना के लगभग आधे मरीज अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक साल बाद भी कम से कम एक लक्षण से पीड़ित हैं. ज्यादातर मरीजों में थकान या मांसपेशियों में कमजोरी है. गंभीर संक्रमण होने के बाद हफ्तों या महीनों तक उसका असर झेलने वाले लाखों लोग हैं.
ऐसे लोगों में सुस्ती और थकान से लेकर ध्यान भटकने या सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण हैं। रिसर्च में कहा गया है कि रिकवरी के एक साल बाद भी तीन रोगियों में से एक को सांस की तकलीफ है। बीमारी से अधिक गंभीर रूप से प्रभावित रोगियों में यह संख्या और भी अधिक है। रिसर्च के दौरान डिस्चार्ज होने के 6 और 12 महीने बाद मरीजों के लक्षणों और उनके स्वास्थ्य से संबंधित अन्य जानकारी के लिए जांच की गई। ठीक होने के 6 महीने बाद 68 फीसद मरीजों में कम से कम एक लक्षण था, जबकि एक साल बाद ऐसे मरीजों की संख्या 49 फीसद थी। हर तीन में से एक मरीज को सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है, जबकि कुछ रोगियों में फेफड़ों से जुड़ी समस्या की शिकायत बनी हुई है।
रिसर्च के दौरान संक्रमण के 6 माह बाद 353 मरीजों का सीटी स्कैन किया गया। रिपोर्ट में फेफड़ों में कई गड़बड़ियां पाई गईं। इन मरीजों को अगले 6 महीने के अंदर दोबारा सीटी स्कैन कराने की सलाह दी गई। इनमें 118 मरीजों ने 12 महीने के बाद दोबारा सीटी स्कैन कराया। रिपोर्ट में सामने आया कि इनमें कुछ मरीज एक साल बाद भी पूरी तरह से ठीक नहीं थे और गंभीर रूप से बीमार थे। रिसर्च के मुताबिक 6 महीने के बाद 26 फीसद रोगियों में सांस लेने में तकलीफ 12 महीने के बाद 30% हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में 1.4 गुना ज्यादा थकान और मांसपेशियों में कमजोरी के मामले सामने आए हैं। संक्रमण के 12 महीने बाद इनके फेफड़ों के बीमार होने का खतरा ज्यादा रहता है। कोरोना के जिन मरीजों को इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया गया था उनमें 1.5 गुना तक थकान और मांसपेशियों में कमजोरी ज्यादा देखी गई।
Source : Prem Prakash Rai