भारत में ड्रोन का Trial, जानें इसके इस्तेमाल के लिए क्या होगा नियम

देश में कोरोनावायरस से जंग लड़ने के लिए सरकार पूरी तरह जुटी हुई है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन और दवाई पहुंचाने के लिए अब ड्रोन का सहारा लिया जाएगा. बेंगलुरु में इसका ट्रायल भी शुरू हो चुका है.

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Vineeta Mandal
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ड्रोन( Photo Credit : सांकेतिक चित्र)

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देश में कोरोनावायरस से जंग लड़ने के लिए सरकार पूरी तरह जुटी हुई है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन और दवाई पहुंचाने के लिए अब ड्रोन का सहारा लिया जाएगा. बेंगलुरु में इसका ट्रायल भी शुरू हो चुका है. चिकित्सा संबंधि इन ड्रोन्स को बियॉन्ड विजुअल लाइन ऑफ साइट (BVLOS) मेडिकल ड्रोन का नाम दिया गया है. बेंगलुरु में शुक्रवार से इन ड्रोन का ट्रायल भी शुरू हो गया है. थ्रोटल एयरोस्पेस सिस्टम्स नाम की कंपनी इस ट्रायल को अंजाम दे रही है, जो बेंगलुरु से 80 किलोमीटर दूर स्थित गौरीबिदनुर अगले 30 से 45 दिनों तक ड्रोन से वैक्सीन और दवा पहुंचाने का परीक्षण करेगी. खबरों के मुताबिक भारत से पहले मेडिकल ड्रोन के ट्रायल का प्लान थ्रोटल एयरोस्पेस सिस्टम्स कंपनी ने इनवोली-स्विस के साथ मिलकर तैयार किया है.

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ड्रोन से डिलवरी

ड्रोन को लेकर इस समय दुनिया भर में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे है.

- अमेरिका ड्रोन का इस्तेमाल एम्बुलेंस और हवाई हमलों के लिए कर रहा है

- न्यूज़ीलैंड में डोमिनोज ने ड्रोन से पिज्जा डिलिवरी की जा रही है.

- रूस में .‘डोडो पिज्जा’ ड्रोन के जरिए पिज्जा पहुंचा रही है.

- आयरलैंड की कंपनी मन्ना एरो पिछले साल से ही ड्रोन के जरिये दवाई और ग्रॉसरी लोगों तक पहुंचा रही है.

भारत में ड्रोन

  •  भारत में अब तक कुल 20 कंपनियों को इस तरह की इजाजत मिल चुकी है.
  • पिछले साल 13 कंपनियों को ड्रोन से स्प्लाई की इजाजत मिली थी.
  • भारत में सुरक्षा से लेकर निगरानी और वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए ड्रोन का इस्तेमाल होता है.
  • दिल्ली में छतों की तलाशी और जुलूस पर निगाह रखने के लिए ड्रोन यूज किया जा रहा है.
  • 2014  में मुंबई के पिज्जा आटलेट फ्रांसेस्कोज पिजेरिया ने ड्रोन से डेलिवरी की थी.
  • भारत में ड्रोन्स के जरिए दवाइयों और खाने की डिलीवरी जल्द ही हकीकत बन सकती है.
  • भारत सरकार ने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी हैं, और टेंडर भी निकाला था .

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पीएसयू HLL लाइफकेयर लिमिटेड की सहायक कंपनी HLL इंफ्रा टेक सर्विसेज लिमिटेड ने देश में दूरदराज स्थानों पर मेडिकल सप्लाई की डिलीवरी के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की ओर से EoI (एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट) आमंत्रित किया था . इस परियोजना का उद्देश्य UAV (अनमैन्ड एरियरल व्हीकल) के जरिये दुर्गम क्षेत्रों के लिए एक मेडिकल सप्लाई डिलीवरी मॉडल विकसित करना है.

टेंडर के मुताबिक, UAV न्यूनतम 35 किमी की हवाई दूरी को न्यूनतम 100 मीटर के वर्टिकल एल्टीट्यूड के साथ कवर करने में सक्षम होना चाहिए और कम से कम 4 किलो का भार उठाना चाहिए.

HLL की तरफ से जारी टेंडर में कहा गया है कि वैक्सीन की डिलीवरी में तेजी के लिए, ICMR ने IIT कानपुर के साथ मिलकर UAV से वैक्सीन डिलीवर करने पर स्टडी की है. स्टडी के शुरुआती परिणाम के आधार पर, ICMR ने इसके लिए एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल तैयार किया है. स्टडी में प्राप्त अनुभव के आधार पर, ICMR अलग-अलग इलाकों को कवर करने के लिए UAV से वैक्सीन डिलीवरी के लिए एक मॉडल विकसित करने के लिए उत्सुक है.

अप्रैल में केंद्र सरकार ने तेलंगाना सरकार को ड्रोन्स के जरिये कोविड वैक्सीन की डिलीवरी के एक्सपेरिमेंट के लिए अनुमति दी थी. तेलंगाना के ‘मेडिसिन फ्रॉम द स्काई’ प्रोजेक्ट के ट्रायल्स मई में शुरू हुए थे.

ड्रोन डिलीवरी के लिए अनुमति जरूरी

किसी भी उड़ान के लिए भारत में DGCA की अनुमति लेनी होती है. ड्रोन डिलीवरी के लिए भी कंपनियों को ऐसा ही करना होगा. ड्रोन डिलीवरी कंपनियों और ड्रोन को डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) की अनुमति लेनी होगी. ड्रोन के संचालन के लिए ड्रोन ऑपरेटर्स को DGCA से अनमैन्ड एयरक्राफ्ट ऑपरेटर पर्मिट (UAOP) लेना होगा.

DGCA की वेबसाइट के मुताबिक, भारत में ड्रोन उड़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, भारतीय एयरफोर्स और स्थानीय पुलिस ऑफिस की अनुमति की भी जरूरत पड़ती है.

ड्रोन क्या है-

ड्रोन कंप्यूटर या रिमोट से चलने वाला ऐसा हवाई वीइकल है, जिसमें पायलट नहीं होता. ड्रोन शब्द इंग्लिश का है, जिसका अर्थ मेल (नर) मधुमक्खी होता है. फाइटर ड्रोन और डिलिवरी ड्रोन की तकनीक  मिलती-जुलती है. फाइटर ड्रोन जमीन से हजारों फुट ऊपर उड़ते हुए दुश्मन पर बम-गोले गिराते हैं. डिलिवरी ड्रोन कम ऊंचाई पर उड़ता है और पैकेज डिलिवर करने या निगरानी करने के काम आता है.

फाइटर ड्रोन की पावर काफी ज्यादा होती है और यह कई घंटों तक काफी वजन के साथ उड़ान भर सकता है. फाइटर ड्रोन के कैमरे भी ज्यादा सेंसटिव होते हैं और काफी ऊंचाई से जमीन की हलचल पकड़ लेते हैं.

ड्रोन को एक पायलट और एक ऑपरेटर मिलकर चलाते हैं। पायलट इसे रिमोट के जरिए कंट्रोल कर इसका काम और दिशा तय करता है, जबकि ऑपरेटर इसके काम पर मसलन किस दिशा में जा रहा है, पर नजर रखता है.

जीपीएस सिस्टम के जरिए काम करने वाले अलग-अलग ड्रोन की कार्यक्षमता अलग-अलग होती है. सामान्य तौर पर निगरानी के लिए यूज किए जानेवाले ड्रोन की रेंज फिलहाल 100 किमी तक है. एक बार बैटरी चार्ज होने पर यह काफी ऊंचाई पर 100 किमी प्रति घंटा की स्पीड से उड़ सकता है,इसकी एक बैटरी लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है. कुछ ड्रोन एक बार बैटरी चार्ज किए जाने पर 40 किमी प्रति घंटा के हिसाब 20 किमी तक जा सकते हैं.

एक सामान्य ड्रोन बनाने में लगभग 5 से 10 लाख रुपये तक का खर्च आता है. मुंमई में जिस ड्रोन से पिज्जा डिलिवरी हुई थी, उस तरह के कस्टमाइज्ड ड्रोन की लागत लगभग 2000 डॉलर (1.22 लाख रु.) बैठती है. एक ड्रोन में आमतौर पर 4 से आठ मोटरें लगी होती हैं.

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