सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश, मजदूरों से बस-ट्रेन का किराया ना वसूला जाए

प्रवासी मजदूरों को लेकर दिए एक अहम आदेश में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने कहा है कि बस या ट्रेन से सफर कर रहे प्रवासी मजदूरों से कोई किराया न वसूला जाए.

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nitu pandey
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सुप्रीम कोर्ट बोला- मजदूरों से बस-ट्रेन का किराया ना वसूला जाए( Photo Credit : न्यूज स्टेट ब्यूरो)

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प्रवासी मजदूरों (migrant labours) को लेकर दिए एक अहम आदेश में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने कहा है कि बस या ट्रेन से सफर कर रहे प्रवासी मजदूरों से कोई किराया न वसूला जाए. राज्य उनके किराया का खर्च उठाये. कोर्ट ने कहा है कि फंसे हुए मजदूरों को खाना- शरण उपलब्ध कराना उन राज्यों की ज़िम्मेदारी है, जहां वो फंसे हुए है. बस टर्मिनल या रेलवे स्टेशन पर मजदूरों को खाना उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी वहां की सरकार की है. यात्रा के दौरान रेलवे खाना उपलब्ध कराए .रजिस्ट्रेशन के बाद मजदूरों को जल्द से जल्द उनके घर भेजने की व्यवस्था की जाए.मजदूरों को बताया जाए कि उन्हें बस या ट्रेन मिलने के लिये कितना इंतज़ार करना होगा. ताकि उन्हें परेशानी न झेलनी पड़े.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमे दो राय नहीं कि केंद्र और राज्यो ने कदम उठाए है लेकिन मजदूरों के घर जाने रजिस्ट्रेशन , ट्रांसपोर्टेशन और उनको खाना- पानी उपलब्ध कराने की प्रकिया में कई खामियां है. रजिस्ट्रेशन के बाद भी उन्हें घर जाने के लिए ट्रेन/ बस की सुविधा उपलब्ध होने में काफी वक्त लग रहा है. अभी भी मजदूर पैदल सड़को पर है.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, इंदिरा जय सिंह, संजय पारिख, आनंद ग्रोवर, कॉलिन गोंजाल्विस पेश हुए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा.

सरकार की दलील

सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, '1 मई से लेकर अब तक 91 लाख मजदूरों को उनके गृह राज्यों में भेजा गया है . 3700 श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिये 50 लाख मजदूरों को भेजा गया है इसके अलावा करीब 41 लाख लोगो को बसों के जरिये उनके गृह राज्यों में भेजा गया है.केंद्र और राज्य मिलकर अपनी विचारधारा और पार्टी लाइन से ऊपर उठकर मजदूरों को घर भेजने के काम में लगे है. हर रोज 1.85 लाख मजदूरों को भेजा जा रहा है.'

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सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने सरकार से पूछा कि मजदूरों का किराया कौन भर रहा है ऐसा लगता है कि इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है जिसका नाजायज फायदा दलाल उठा रहे है . इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि शुरुआत में इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी. लेकिन बाद में ये तय हुआ कि किराया या तो वो राज्य देंगे जहां से मजदूर पलायन कर रहे है या वो राज्य ,जहां पर मजदूरों को जाना है.लेकिन ये साफ है कि किराया मजदूरों को चुकाने की ज़रूरत नहीं है. सफर के दौरान खाना पानी रेलवे द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराया जा रहा है. रेलवे 81 लाख लोगों को खाना खिला चुका है.यात्रा पूरी होने पर भी मजदूरों की स्क्रीनिंग होती है,ताकि कोरोना संक्रमण न फैले.80 % से ज़्यादा मज़दूर यूपी, बिहार से आते है. यूपी जैसे राज्यों ने मजदूरों के रेलवे स्टेशन पर पहुँचने पर उनको क्वारंटाइन करने की व्यवस्था भी की है.

सुप्रीम कोर्ट के सवाल

सुनवाई के दौरान सुप्रीन कोर्ट ने सरकार से कई सवाल पूछे और सरकार से स्थिति स्पष्ठ करने को कहा . कोर्ट ने पूछा कि -घर के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के बावजूद प्रवासी मजदूरों को इतना इंतज़ार क्यों करना पड़ रहा है. क्या पहले उन्हें किराया देने के बोला गया. क्या इतंजार के दरमियान उन्हें खाना मिल रहा है. जब एफसीआई के पास पर्याप्त अनाज है तो अनाज की कमी तो नहीं होनी चाहिए .हम मानते है कि सबको एक साथ भेजा नहीं जा सकता, लेकिन इस दरमियान उन्हें खाना, शरण तो मिलनी चाहिए.जब तक ये लोग अपने घरों तक नही पहुंच जाते, उन्हें खाना, पानी, बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है. कोर्ट ने पूछा कि मजदूरो को कैसे पता चलेगा कि रजिस्ट्रेशन के बाद उन्हें घर जाने के लिए व्यवस्था कब तक हो पाएगी. कौन सा राज्य उनके किराए का खर्च उठाएगा ? मजदूरों को ये स्पष्ठता रहे कि उन्हें किराया नहीं चुकाना होगा ताकि वो दलालो के चंगुल में न फंसे.कोर्ट ने ये साफ होना चाहिए कि कोई राज्य मजदूरों को एंट्री देने से इंकार नहीं कर सकता.

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कोर्ट के पूछे गए सवालों के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वो राज्यों से बात कर विस्तृत जवाब दाखिल करेंगे.

SG ने याचिकाकर्ताओं पर कटाक्ष किया

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस मासले पर कोर्ट से संज्ञान का आग्रह करने वाले बड़े वकीलो पर कटाक्ष किया.
उन्होंने ने कहा- कुछ लोग नकारात्मकता से भरे हैं. उनमें देशप्रेम नहीं है.वे उस फोटोग्राफर की तरह है,जिसने मौत की कगार पर पहुंचे बच्चे और गिद्ध की तस्वीर खींची थी. जिन लोगों ने आपसे संज्ञान लेने का आग्रह किया , जरा उनका ख़ुद का योगदान भी तो देखिए.वो करोड़ों में कमाते हैं लेकिन क्या 1 पैसा भी वो खर्च कर रहे है. लोग सड़कों पर भूखों को खाना खिला रहे है पर क्या ये लोग मदद के लिए वातानुकूलित कमरों से बाहर निकले है. उन लोगों से हलफनामा दाखिल करवा के पूछा जाना चाहिए कि आखिर वो क्या मदद कर रहे है. ऐसे लोगों को राजनीति मकसदों के लिए कोर्ट के इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए.

इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि अगर कुछ लोग न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. हम अपनी अंतरात्मा के हिसाब से न्याय के लिए काम करेंगे.

बहरहाल मामले की अगली सुनवाई 5 जून को होगी.तब तक केंद्र और राज्य विस्तृत जवाब दाखिल करेंगे. जवाब में प्रवासी मजदूरों की संख्या, उनके भेजे जाने की प्रकिया की जानकारी , समेत तमाम बिंदुओं को शामिल करेंगे.

Source : News Nation Bureau

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