पहाड़ में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना विपरीत परिस्थितियों में सच्ची साथी साबित हो रही है. अल्मोड़ा जिले में ही कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं कि कई महिलाओं की निराशा को इस योजना ने खुशहाली में तब्दील कर दिया है. योजना ने कहीं रोजगार दिया, तो कहीं आजीविका सुदृढ़ कर डाली है. इसी बात का एक प्रेरणादायी उदाहरण हवालबाग ब्लाक के कनालबूंगा निवासी निर्मला फत्र्याल ने प्रस्तुत किया है. जिनका परिवार कोरोनाकाल में दिल्ली छोड़ गांव आया और आजीविका से जुड़कर गांव में अच्छा खासा कारोबार खड़ा कर दिया.
दरअसल, जिला मुख्यालय के निकटवर्ती ब्लाक हवालबाग की ग्राम पंचायत कनालबूंगा निवासी निर्मला फत्र्याल वर्ष 2019 तक अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती थी, लेकिन कोरोना महामारी से उपजी विपरीत परिस्थितियों के कारण उन्हें सपरिवार दिल्ली छोड़कर अपने गांव आना पड़ा. इसके बाद उनके सामने आजीविका वृद्धि का प्रश्न खड़ा हो गया. जानकारी मिलने पर उन्होंने दिल्ली से लौटने के 06 महीने बाद राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने की ठानी. उन्होंने योजना के तहत ही देवी मां नामक स्वयं सहायता समूह बनाया और इससे सक्रिय महिलाओं को जोड़ा. निर्मला के समूह को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना द्वारा आरएफ की धनराशि मिली व सीसीएल की धनराशि भी प्राप्त हुई और इनके समूह को आरसेटी हवालबाग के माध्यम से मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया.
इसके बाद वह समूह के साथ मशरूम की खेती में जुट गई. उत्पादन शुरू हुआ, तो स्वाभाविक रूप से मशरूम की बिक्री शुरू हुई. परियोजना निदेशक चन्द्रा फत्र्याल ने उनकी उपलब्धि के बारे में बताया कि मशरूम बेचकर आज उनके समूह को एक साल में करीब 35000 रुपये का आय हो रही है. उन्होंने बताया कि निर्मला ने अब मशरूम उत्पादन के साथ ही मधुमक्खी पालन का कार्य भी शुरू किया है. शहद उत्पादन में भी उन्हें बड़ी सफलता मिली और वर्तमान में वह शहद बेचकर साल में करीब 2,00000 रुपये की आय प्राप्त कर रही हैं. इसके अलावा वह व्यवसाय के साथ-साथ सीआरपी का कार्य भी करती हैं. अब वह अन्य लोगों को भी आजीविका बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही हैं और वर्तमान में समूह व ग्राम संगठन का गठन करते हुए योजना की जानकारियां प्रदान कर रही हैं.
Source : IANS