मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि (ShriKrishna JanamBhoomi) 13. 37 एकड़ भूमि को मुक्त कराने और शाही मस्जिद को जन्मभूमि से हटाने के लिए मथुरा कोर्ट में दाखिल मामले में 30 सितंबर को सुनवाई की जाएगी. कोर्ट पहले याचिका की मेंटनेबिलिटी पर सुनवाई करेगा यानी ये तय करेगा कि याचिका स्वीकार करने लायक है या नहीं. अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाने के बाद अब श्रीकृष्ण के भक्तों ने भी मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर (Shri Krishna Janmabhoomi) में मुगल शासक औरंगजेब के कार्यकाल में बने शाही ईदगाह मस्जिद को वहां से हटाने की मांग की गई है. जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन के साथ भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की सखा रंजना अग्निहोत्री ने कोर्ट में यह सिविल सूट दायर किया है. इस याचिका में जमीन को लेकर 1968 के समझौते को गलत बताया गया है. याचिका में मांग की गई है कि कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व दिया जाए. इसी जमीन पर मुगलकाल में कब्जा कर शाही ईदगाह बना दी गई थी. याचिका में इस शाही ईदगाह मस्जिद को भी हटाने की मांग की गई है.
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विष्णु शंकर जैन के मुताबिक श्रीकृष्ण की मुख्य जन्मभूमि और जो इटेलियन ट्रैवलर ने अपने एकांउट में मेंशन किया है, उसके नक्शे के हिसाब से मुकदमे को सिविल में डाला गया है. जानकारी के मुताबिक मथुरा के सिविल जज की अदालत में इससे पहले भी एक और मामला दाखिल हुआ था. जिसे अदालत ने श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान और ट्रस्ट के बीच समझौते के आधार पर 20 जुलाई 1973 को बंद कर दिया गया था. श्रीकृष्ण विराजमान, अस्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि, उनकी सखा लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री व त्रिपुरारी त्रिपाठी, दिल्ली निवासी कृष्ण भक्त प्रवेश कुमार, करुणेश कुमार शुक्ला व शिवा जी सिंह, सिद्धार्थ नगर निवासी कृष्ण भक्त राजमणि त्रिपाठी की ओर से पेश किए दावे में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था. इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी. वादी के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है. ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है. उन्होंने मस्जिद को हटाने की मांग की है.
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यह हैं वादी
श्रीकृष्ण विराजमान, अस्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि, श्रीकृष्ण की सखा लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री व त्रिपुरारी त्रिपाठी, दिल्ली निवासी कृष्ण भक्त प्रवेश कुमार, करुणेश कुमार शुक्ला व शिवा जी सिंह, सिद्धार्थ नगर निवासी कृष्ण भक्त राजेशमणि त्रिपाठी.
यह हैं प्रतिवादी
यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंध समिति, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संस्थान.
यह है दावा
सन् 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था. इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी. जिस जमीन पर स्थित है, वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर है. ऐसे में सेवा संस्थान का किया गया समझौता गलत है. वर्ष 1618 में राजा वीर सिंह ने इस स्थान पर कटरा केशव देव मंदिर 33 लाख रुपये में बनवाया था. वर्ष 1670 में औरंगजेब ने मंदिर को आंशिक क्षतिग्रस्त किया और मस्जिद का निर्माण किया. पांच अप्रैल, 1770 को गोवर्धन में मराठा और मुगल के बीच जंग हुई और मराठा जीत गए. मराठा ने दोबारा कटरा केशव देव मंदिर का जीर्णोद्धार किया और मस्जिद को हटा दिया. 1803 में अंग्रेजों ने अपने कब्जे में पूरा इलाका लिया.
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1815 में इस 13.37 एकड़ जमीन को वाराणसी के राजा पटनीमल ने नीलामी में खरीद लिया. 21 फरवरी, 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बन गया. राजा पटनीमल के परिवार ने यह जमीन ट्रस्ट को दे दी. 12 अक्टूबर, 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंध समिति के बीच जमीन को लेकर फर्जी समझौता हुआ कि मस्जिद जितनी जमीन पर बनी है, उसे स्वीकार कर लिया गया. तर्क दिया गया है कि पूरी जमीन राजा पटनीमल ने ट्रस्ट को दी थी, फिर सेवा संस्थान को समझौते का अधिकार ही नहीं है.
Source : News Nation Bureau