गोरक्षा के नाम पर देश में हो रही हिंसा को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती बरतते हुए राज्यों को निर्देश दिया है कि वे इस रोकने का प्रयास करें।
सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड़ की एक बेंच ने कहा कि यह कानून व्यवस्था है और यह हर राज्यों की जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'कोई व्यक्ति कानून को हाथ में नही ले सकता है। इस तरह के मामलों पर रोक लगाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। ये कोर्ट की भी जिम्मेदारी बनती है, हम विभिन्न याचिकाओं पर विस्तृत फैसला देंगे।'
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि अदालत के सरकारों के सख्त आदेश के बावजूद लगातार इस तरह के मामले हो रहे है, अभी दिल्ली से 60 किमी की दूरी पर ऐसा मामला हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कोई एक मामले का सवाल नहीं है, ये 'भीड़ की हिंसा' है, इस पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार को अनुच्छेद-257 के तहत योजना बनानी चाहिए।
इस मामले पर केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलीसिटर जनरल (एएसजी) पी एस नरसिम्हा ने कहा कि केंद्र इस स्थिति से वाकिफ है और इस मुद्दे से निपटने की कोशिश कर रही है।
एएसजी ने कहा, 'ये मामला कानून-व्यवस्था का है। सीधे तौर पर राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है। सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार कोर्ट के निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर रही है?'
वहीं एएसजी के जवाब पर इंदिरा जयसिंह ने कहा, 'केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो राज्य सरकारों को महज गाइड लाइन जारी करने के बजाय और कदम भी उठाए। महज राज्य सरकारों पर आरोप डालकर केंद्र अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता।'
गौरतलब है कि पिछले साल 6 सितंबर को कोर्ट ने सभी राज्यों को गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि एक हफ्ते में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की नियुक्ति नोडल ऑफिसर के तौर पर हर जिले में की जाए और कानून हाथ में लेने वाले गोरक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करे।
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Source : News Nation Bureau