केंद्र ने सोमवार को आरक्षण के लाभ से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 'क्रीमी लेयर' को बाहर रखने के सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है. महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष बहस करते हुए कहा कि 2018 में जरनैल सिंह मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के सही होने पर संदेह है.
वेणुगोपाल ने कहा, "हम चाहते हैं कि इस मामले को बड़ी पीठ द्वारा सुना जाए. इससे पहले, पांच न्यायाधीशों की पीठ थी, लेकिन हम चाहते हैं कि मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा जाए. क्रीमी लेयर की अवधारणा एससी/एसटी वर्ग पर लागू नहीं की जा सकती." क्रीमी लेयर सिद्धांत, सामाजिक परिप्रेक्ष्य में वंचित वर्गो के धनवानों को सुविधाओं से अलग करता है और इनके बारे में नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण का विचार नहीं करने का प्रावधान करता है.
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महान्यायवादी ने कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस बात पर विचार नहीं किया कि 2008 में पांच जजों की पीठ ने एक अन्य आदेश में एससी/एसटी समुदायों को क्रीमी लेयर की परिधि से बाहर रखा था. उन्होंने इंदिरा साहनी मामले का संदर्भ दिया. समता आंदोलन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने इस तर्क का विरोध किया.
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शंकरनारायण ने हुए कहा कि जरनैल सिह फैसला काफी स्पष्ट है और इसमें कोई संदेह नहीं बचा था. इसी मामले को एक बार फिर उठाने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने पीठ के समक्ष कहा कि फैसले की समीक्षा प्रत्येक वर्ष नहीं हो सकती और क्रीमी लेयर को लेकर 2018 का फैसला स्पष्ट था, इसलिए समीक्षा की अपील में कोई दम नहीं है. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालत दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई करेगी.