प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेन्सेस (पॉक्सो एक्ट) में संशोधन किए जाने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के सवाल उठाने के बाद बार काउंसिंल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने भी कहा कि फैसला जल्दबाजी में ले लिया गया।
जम्मू-कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ हुए गैंगरेप की घटना के बाद देश भर में नाराजगी के बीच केंद्र सरकार ने पॉक्सो एक्ट में बदलाव के लिए अध्यादेश लाई, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई।
इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्ची के साथ बलात्कार करने पर फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया।
सरकार के इस फैसले पर बीसीआई के चेयरमैन मनन मिश्रा ने कहा, 'इस संशोधन को मुकम्मल बहस के बाद लाना चाहिए था। मेरा मानना है कि यह जल्दबाजी में लिया गया कदम है। इसके पक्ष और विपक्ष को देखा जाना चाहिए। इसके बाद ही ऐसे संशोधन लाने चाहिए।'
दिल्ली हाई कोर्ट का सवाल
इससे पहले सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट में संसोधन को लेकर केंद्र सरकार से पूछा था कि फांसी की सजा का प्रावधान लाने से पहले क्या इस पर कोई रिसर्च किया गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यकारी चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की बेंच ने सरकार से पूछा, 'क्या आपने कोई स्टडी या वैज्ञानिक तौर पर कोई आकलन कराया कि मौत की सजा से रेप को रोका जा सकता है। क्या आपने सोचा कि पीड़िता को क्या परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं? कितने अपराधी पीड़िता को जीवित छोड़ेंगे जब रेप और मर्डर के लिए समान दंड होगा?'
पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद की स्थिति
सरकार के नए अध्यादेश के मुताबिक 12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार की स्थिति में दोषियों को पूरी जिंदगी जेल की सजा या मृत्युदंड का प्रावधान है।
वहीं 16 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार पर दोषी को 10 से 20 साल की जेल की सजा होगी और गैंगरेप पर आजीवन कारावास में बढ़ाया जा सकता है।
इसके अलावा किसी महिला के साथ बलात्कार करने पर न्यूनतम सजा 7 से 10 साल तक जेल की सजा होगी जिसे उम्रकैद में भी बदला जा सकता है।
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HIGHLIGHTS
- संशोधन के बाद 12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार पर फांसी
- बीसीआई ने कहा कि इसके पक्ष और विपक्ष को देखा जाना चाहिए था
- दिल्ली हाई कोर्ट ने भी केंद्र से पूछा कि क्या इस पर कोई रिसर्च किया गया था
Source : News Nation Bureau