दिल्ली HC का बड़ा फैसला, बिना नोटिस किसी का घर नहीं कर सकते ध्वस्त

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को राष्ट्रीय राजधानी में झुग्गीवासियों को बेदखली का सामना करने के लिए पर्याप्त समय देने का निर्देश देते हुए कहा है कि किसी भी व्यक्तियों को बिना नोटिस के बेघर नहीं किया जा सकता है.

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Iftekhar Ahmed
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Delhi High court

दिल्ली HC का बड़ा फैसला, बिना नोटिस किसी का घर नहीं कर सकते ध्वस्त( Photo Credit : File Photo)

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देश में बुलडोजर राज स्थापित करने की कोशिशों के बीच दिल्ली सरकार ने बुधवार को बड़ा फैसला दिया. दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को राष्ट्रीय राजधानी में झुग्गीवासियों को बेदखली का सामना करने के लिए पर्याप्त समय देने का निर्देश देते हुए कहा है कि किसी भी व्यक्तियों को बिना नोटिस के बेघर नहीं किया जा सकता है. अदालत ने रातों-रात मलिन बस्तियों को हटाने के लिए डीडीए की कार्रवाई पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बिना नोटिस जारी किए या बिना किसी अग्रिम सूचना के बुलडोजर से झुग्गीवासियों से उनका आश्रय स्थल नहीं छीना जा सकता है. 

दिल्ली हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि डीडीए को ऐसी कोई भी कार्रवाई शुरू करने से पहले डीयूएसआईबी / डीयूएसआईबी (दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड) के परामर्श से कार्य करना होगा. इस दौरान किसी भी शख्स को बिना किसी नोटिस के ऐसा नहीं कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि ये कौन सा तरीका है कि किसी के दरवाजे पर देर शाम बुलडोजर भेजकर उसे बेदखल कर दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि जिसका भी अवैध घर तोड़ना हो, उन्हें एक उचित समय दी जानी चाहिए और किसी भी विध्वंसक गतिविधियों को शुरू करने से पहले अस्थायी स्थान उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

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बिना सूचना के 300 मलिन बस्तियों को किया गया था ध्वस्त
दरअसल, झुग्गी-झोपड़ी बस्ती निवासी शकरपुर स्लम यूनियन द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि पिछले साल 25 जून को बिना किसी सूचना के डीडीए के अधिकारी इलाके में पहुंचे और करीब 300 मलिन बस्तियों को ध्वस्त कर दिया. याचिका में आगे कहा गया कि यहां विध्वंस तीन दिनों तक चला. इस दौरान जिनकी झुग्गियां तोड़ी गई थी उनमें से कई लोग अपना सामान भी नहीं उठा सके थे. वहीं, डीडीए अधिकारियों ने पुलिस की मदद से वहां के  निवासियों को मौके से बलपूर्वक भगा दिया था. पीड़ितों की दलील सुनने के बाद अदालत ने ये फैसला दिया है. 

डीडीए के वकील ने कोर्ट को किया आश्वस्त
सुनवाई के दौरान अदालत ने डीयूएसआईबी के वकील से पूछा कि क्या उनके पास ऐसे लोगों को समायोजित करने का कोई प्रावधान है, जिन्हें बेदखल किया जाना है. जवाब में शहरी निकाय ने कहा कि जब वह कोई विध्वंस अभियान चलाता है, तो यह सुनिश्चित करता है कि शैक्षणिक वर्ष के अंत में या मानसून के दौरान कोई विध्वंस न हो. उन्होंने कहा कि आमतौर पर मार्च से जून और अगस्त से अक्टूबर के बीच विध्वंस की कार्रवाई की जाती है.  अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि डीडीए किसी भी विध्वंसक कार्रवाई करने से पहले इसी तरह के मानदंडों का पालन करेगा. 

Source : News Nation Bureau

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