17वीं लोकसभा (17th Lok Sabha) में नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) (Leader of Opposition) का पद कांग्रेस को देने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि इस याचिका पर जल्द सुनवाई की क्या जरूरत है. अभी वेकेशन बेंच चल रही है. इसे रेगुलर बेंच ही सुनेगी. हाईकोर्ट ने 8 जुलाई के लिए सुनवाई टाल दी. एडवोकेट मनमोहन सिंह और शिष्मिता कुमारी की ओर से दायर जनहित याचिका में नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) की नियुक्ति को लेकर नीति बनाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष को निर्देश देने की मांग की गई है.
Delhi High Court posts for July 8, a petition seeking a direction to the Lok Sabha Speaker Om Birla to appoint a Leader of Opposition for the 17th Lok Sabha, saying there is no urgency in the matter. pic.twitter.com/TXxagGoo4w
— ANI (@ANI) June 26, 2019
भारतीय संसद की लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के लिए 1969 में पहली बार किसी नेता को मान्यता दी गई. इसके बाद पांचवीं (1971-77), सातवीं (1980-84) और आठवीं (1984-89) लोकसभा के दौरान यह पद खाली ही रहा. हालांकि, इस बारे में कानूनी परिचर्चा 2014 में शुरू हुई जब स्पीकर ने कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) का पद देने से इनकार कर दिया. हालांकि जब 2015 में बीजेपी को 70 में सिर्फ 3 सीटें मिलीं. फिर भी स्पीकर राम निवास गोयल ने बीजेपी नेता विजेंदर गुप्ता को नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) का दर्जा दिया.
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2014 के चुनाव में कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी थी, जिसके पास कुल 44 सदस्य थे. लोकसभा की कुल सीटों का दस फीसदी यानी 545 में कम से कम 55 सदस्य न होने के आधार पर कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के लिए अधिकृत नहीं किया गया. इस बार 17वीं लोकसभा में कांग्रेस ने घोषणा कर दी है कि उसके पास कुल 52 सदस्य हैं जो 10 फीसदी की शर्त पूरी नहीं करते, इसलिए वह नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) का पद नहीं मांगेगी.
ऐसे आई नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के 10% की शर्त
- 2014 में कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) का पद देने के बारे में लोकसभा स्पीकर ने केंद्र सरकार के सर्वोच्च कानूनी अधिकारी अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सलाह ली थी.
- 23 जुलाई, 2014 को अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने जो सलाह दी, उसमें तीन मुख्य बिंदु थे. पहला, रोहतगी ने 1956 में लोकसभा स्पीकर के निर्देश 120 और 121(1)(c) का हवाला दिया.
- यह निर्देश कहता है कि अगर कोई पार्टी लोकसभा के कुल सदस्यों का 10 फीसदी सदस्य होने का कोरम पूरा नहीं करती है तो लोकसभा अध्यक्ष सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) पद पर मान्यता देने के लिए बाध्य नहीं है.
- निर्देश 120 कहता है कि लोकसभा अध्यक्ष सदन की प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने के मकसद से सदस्यों के एक एसोसिएशन को संसदीय दल या समूह के रूप में मान्यता दे सकता है और लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा.
- निर्देश 121(1)(c) कहता है कि संसदीय दल की मान्यता देने के लिए कम से कम निर्धारित कोरम पूरा होना चाहिए जो कि सदन के कुल सदस्यों का 10 फीसदी होता है.
रोहतगी का दूसरा तर्क
- नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) की मान्यता 'सेलरी एंड एलाउंसेज ऑफ लीडर ऑफ अपोजीशन इन पार्लियामेंट एक्ट, 1977' के दायरे में नहीं आती है
- जबकि नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के लिए जो भी नाम सामने आता है, 'सेलरी एंड एलाउंसेज आफ लीडर आफ अपोजीशन इन पार्लियामेंट एक्ट, 1977' उसे संवैधानिक मान्यता देता है .
रोहतगी का तीसरा तर्क
सीवीसी एक्ट और आरटीआई एक्ट में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के विकल्प के रूप में सबसे बड़ी पार्टी के नेता का प्रावधान किया गया है. इन चारों कानूनों में यह भी प्रावधान है कि अगर चयन समिति में कोई पद खाली है तो भी इसके द्वारा किया गया चयन अवैधानिक नहीं होगा, इसलिए रोहतगी ने नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) की वैधानिक जरूरत से इनकार कर दिया.