दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा है. एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने अपनी याचिका में नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अवहेलना बताया है. सीपीआईएल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट फैसलों के मुताबिक डीजीपी या पुलिस कमिश्नर पद पर नियुक्ति उन्हीं अधिकारियों की हो सकती है जिनकी सेवानिवृत्ति को 6 महीने से ज्यादा बचे हों. सीबीआई निदेशक के तौर पर राकेश अस्थाना की नियुक्ति पर इसी कारण हाई पावर कमेटी ने आपत्ति जताई थी. इसके अलावा नियुक्ति के लिए नाम संघ लोक सेवा आयोग की ओर से आना चाहिए, लेकिन इस नियुक्ति में UPSC की कोई भूमिका नजर नहीं आती.
यह भी पढ़ें : Bharat Bandh: किसानों का 'भारत बंद' खत्म, जानें कैसा रहा किसानों के प्रदर्शन
केंद्र सरकार ने राकेश अस्थाना को 1 साल के लिए नियुक्त किया, जबकि फैसले के मुताबिक कार्यकाल दो साल का होना चाहिए. ये भी प्रकाश सिंह जजमेंट का उल्लंघन है. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं निहित स्वार्थों से प्रेरित होती है. जनहित याचिका अपने आप में एक इंडस्ट्री, करियर बन चुकी हैं. नियुक्तियों का विरोध करना एक फैशन सा बन गया है.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई फैसलों में साफ कर चुका है कि सर्विस मामलों में PIL लागू नहीं होती. प्रकाश सिंह जजमेंट यहां लागू नहीं होता है, क्योंकि वह फैसला सिर्फ राज्यों के डीजीपी की नियुक्ति के बारे में था न कि केंद्र शासित प्रदेशों में कमिश्नर की नियुक्ति को लेकर.
आपको बता दें कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट से राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका पर दो सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा था. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि कुछ मुद्दे हैं, एक आधार के रूप में मेरे मामले में मेरी भागीदारी के बारे में है. मैंने सीबीआई चयन में इस व्यक्ति के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं.
प्रधान न्यायाधीश ने उच्चाधिकार प्राप्त समिति में भाग लेते हुए अस्थाना की सीबीआई प्रमुख के रूप में नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी. शीर्ष अदालत अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने प्रस्तुत किया, मुझे नहीं लगता कि यह आपके प्रभुत्व (लॉर्डशिप) को बिल्कुल भी अक्षम करता है.
यह भी पढ़ें : डेनर्बी ने दोस्ताना मुकाबले के लिए 23 सदस्यीय भारतीय महिला फुटबॉल टीम घोषित की
बेंच में जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत ने कहा कि इसी मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. पीठ ने कहा कि हम उच्च न्यायालय को इसे (याचिका) निपटाने के लिए 2 सप्ताह का समय देंगे. इसके साथ ही पीठ ने याचिका को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया.
भूषण ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय में याचिका उनके मुवक्किल की याचिका से कॉपी-पेस्ट है। भूषण ने कहा, हमारे यहां याचिका दायर करने के बाद इसे किसी और के माध्यम से दायर किया था. पीठ ने भूषण को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में हस्तक्षेप करने की छूट दी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत से मामले पर फैसला करने के लिए उच्च न्यायालय को कम से कम 4 सप्ताह की अवधि देने का आग्रह किया, लेकिन पीठ नहीं मानी. शीर्ष अदालत ने मामले को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया.
HIGHLIGHTS
- केंद्र सरकार ने राकेश अस्थाना को 1 साल के लिए नियुक्त किया
- सीबीआई निदेशक के तौर पर अस्थाना की नियुक्ति पर भी जताई गई थी आपत्ति