राजधानी में यमुना नदी पर बने बहुप्रशिक्षित कर मशहूर सिग्नेचर ब्रिज की सौगात दिल्लीवासियों को मिली. 575 मीटर लंबा यह पुल 2004 में प्रस्तावित हुआ था और इसे 2007 में दिल्ली कैबिनेट द्वारा मंजूरी दी गई थी. यह उत्तरी और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बीच यात्रा के समय को कम करेगा. कई समय सीमाओं को पार कर बना ये ब्रिज आम लोगों के लिए खोला गया. इसी बीच लोगों ने कुछ ऐसी हरकत की जो कि बेहद हैरान कर देने वाली है.
दिल्ली में बने पुल को भारी संख्या में लोग देखने पहुंच रहे है. इसी बीच लोगों में बीच रस्ते पुल पर सेल्फी लेने का जूनून छाया हुआ है. लोग अपनी जान हथेली पर रखकर चलती गाड़ियों के शीशे से लटककर तो केबल पर खतरनाक तरीके से चढ़कर सेल्फी लेते हुए नज़र आये. रोज शाम को पुल पर सेल्फीप्रेमियों की भीड़ जमा होती है, जिसमें से कुछ लोग खतरनाक स्टंट करते हुए कैमरे में कैद हुए. सेल्फी पॉइंट बने पुल पर आलम ये है कि लोगों ने यहां प्लास्टिक की बोतलें तक फेंक दी है.
ब्रिज पर लोगों में सेल्फी लेने की होड़ है और ऐसे में जाम की समस्या भी पैदा हो सकती है. सरकार ने इसे देश का पहला एसिट्रिकल केबल स्टे ब्रिज होने का दावा किया है. इस पुल के जरिए लोगों को 154 मीटर ऊंचे निगरानी डेक से शहर के विहंगम दृश्य का आनंद उठाने को मिलेगा.यह पुल नदी पार वजीराबाद को जोड़ता है और इससे उत्तर व उत्तरपूर्वी भाग के बीच 45 मिनट के सफर में अब सिर्फ 10 मिनट लगेंगे.
आज के दौर में सेल्फी लेना आम बात हो गई है. शहरों में यह बीमारी तेजी से युवाओं को अपने प्रकोप में ले रही है. इंटरनेशनल स्टडी के अनुसार 60 प्रतिशत महिलाएं इससे अनजान होती हैं. सेल्फीसाइटिस एक ऐसी कंडीशन होती है, जब इंसान अगर कोई सेल्फी नहीं ले या उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करे तो उसे बेचैनी होने लगती है. इसे ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर कहा जाता है.
क्या होते हैं इसके लक्षण
- कुछ लोग नहीं चाहते हुए भी लोग सेल्फी से खुद को रोक नहीं पाते हैं.
- जरूरत से ज्यादा सेल्फी लेने की चाहत बॉडी में डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर नाम की बीमारी को भी जन्म देती है.
- इस बीमारी से लोगों को लगने लगता है कि वे अच्छे नहीं दिखते हैं. माना जाता है कि सेल्फी के दौर ने कॉस्मेटिक सर्जरी कराने वालों की संख्या बढ़ा दी है.
- जब एक इंसान को अपने रोज के काम में कोई एक आदत बाधा डालने लगे तो समझ में आता है कि वह ऑब्सेसिव कंप्लसिव डिसऑर्डर का शिकार है.
- पढ़ने वाले को पढ़ाई में मन नहीं लगे, काम वाले को काम में मन नहीं लगे, तो यह बीमारी की शुरुआत है. अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो यह बढ़ती जाती है.
Source : News Nation Bureau