लॉकडाउन के कारण फंसे बिहार के प्रवासी मजदूर मोहन झा ने यह खुशखबरी देने को अपने परिवार को बड़े उत्साह के साथ फोन किया कि वह घर लौटने के लिए अंतत: ट्रेन में सवार हो रहा है, लेकिन वह उस समय मानो सुन्न हो गया जब उसके पांच साल के बेटे ने उससे पूछा, ‘‘क्या दिवाली जल्दी आ गई है?’’ झा के पास अपने बेटे को यह हकीकत बताने की हिम्मत नहीं थी कि वह शायद इस साल दीपावली मना भी नहीं पाएगा, क्योंकि उसके पास पैसा कमाने के लिए कोई काम नहीं है. गुरुग्राम के निकट सोहना में एक निर्माण स्थल पर मजदूरी करने वाले झा के पास लॉकडाउन की घोषणा किए जाने के बाद से ना तो कोई काम बचा है और ना ही पैसा कमाने का कोई और जरिया. करीब दो महीने जैसे-तैसे गुजर बसर करने और सामुदायिक रसोइयों में खाना खाकर पेट भरने वाला झा अंतत: इस सप्ताह बिहार के मुजफ्फरपुर जाने वाली ट्रेन में सवार हुआ.
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झा ने कहा, ‘‘मैं पिछले दो महीने से घर लौटने की कोशिश कर रहा हूं. लंबे इंतजार के बाद अंतत: मुझे ट्रेन में सवार होने का मौका मिल ही गया. राहत की सांस लेते हुए मैंने अपने परिवार को जब यह जानकारी देने के लिए फोन किया, तो मेरे बेटे ने मुझसे सवाल किया कि क्या इस बार दीपावली पहले आ गई है, जो मैं घर लौट रहा हूं. उसके मन में कई सवाल थे कि दीपावली इस बार गर्मियों में क्यों आ रही है. मेरा दिल टूट गया. मैं उसे यह नहीं बता सका कि इस साल कोई दीपावली नहीं होगी, क्योंकि कोई काम नहीं है.’’ उसने कहा, ‘‘मुझे पता है कि वह उम्मीद कर रहा होगा कि मैं उसके लिए कोई उपहार लेकर जाऊंगा, लेकिन इस बार मैं अपने बच्चे के चेहरे पर उपहार वाली खुशी नहीं देख पाउंगा.’’ झा ने फोटो खिंचवाने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘मेरे दु:ख को कोई कैमरा कैद नहीं कर सकता.’’
झा के साथ ही निर्माण स्थल पर काम करने वाले एक और मजदूर भरत बाबू ने कहा, ‘‘हमारे बच्चों को लगता है कि हम तभी घर आते हैं जब दीपावली या छठ होती है. उन्हें अभी इस बात की समझ नहीं है कि हम अचानक घर क्यों लौट रहे हैं और शायद हम अब कभी घरों से यहां नहीं आएंगे. ऐसा लगता है कि यह वायरस हमारी कई साल की दीपावली को ग्रहण लगा देगा.’’ हालांकि सरकार ने निर्माण गतिविधियां शुरू करने की अनुमति दे दी है लेकिन श्रमिकों का कहना है कि उनके लिए हकीकत में काम नहीं है.
बाबू ने कहा, ‘‘ठेकेदारों का कहना है कि कच्चा माल नहीं है और सरकार ने काम खत्म करने के लिए अतिरिक्त समय दे दिया है तो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं है. यदि ठेकेदार हमसे काम कराता है तो उसे हमारा बकाया चुकाना पड़ेगा, इसलिए कोई हमें काम नहीं देना चाहता.’’ 42 वर्षीय मांझी कुमार ने कहा, ‘‘मैं पिछले सात साल से गुरुग्राम में हूं और इस साल अपने परिवार को भी यहां लाने की सोच रहा था. मेरा बेटा शहर के स्कूल में पढ़ने को लेकर बहुत उत्साहित था, लेकिन ये सभी योजनाएं धरी रह गईं. पता नहीं अब मैं लौटूंगा या वहीं काम तलाश करूंगा.’’
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हरियाणा के विभिन्न स्थानों से 40,000 से अधिक प्रवासी श्रमिक बिहार के मुजफ्फरपुर, बरौनी और किशनगंज के लिए बृहस्पतिवार को श्रमिक विशेष ट्रेनों से रवाना हुए. हरियाणा के मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार राज्य से 2.38 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों को उनके घर भेजा गया है. देश में कोरोना वायरस को काबू करने के लिए 25 मार्च से लॉकडाउन लागू है. लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां पटरी से उतर जाने के कारण कई लोग बेघर हो गए हैं और कई लोगों की जमा पूंजी खत्म हो गई है. इसकी वजह से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं.
Source : Bhasha