जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सेवानिवृत्त होने के कुछ दिनों बाद सोमवार को एक सनसनीखेज दावे में कहा कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा किसी 'बाहरी ताकत' के प्रभाव में काम कर रहे थे जिससे न्यायिक प्रशासन प्रभावित हुआ. जस्टिस जोसेफ सुप्रीम कोर्ट के उन चार न्यायाधीशों में शामिल थे जिन्होंने जनवरी महीने में एक अभूतपूर्व प्रेस कांफ्रेस का आयोजन किया था.
जस्टिस जोसेफ ने उच्चतम न्यायालय के तीन अन्य न्यायाधीशों जस्टिस जे चेलमेश्वर (अब सेवानिवृत्त), जस्टिस रंजन गोगोई (वर्तमान में प्रधान न्यायाधीश) और जस्टिस मदन लोकुर के साथ 12 जनवरी को एक प्रेस कांफ्रेंस कर जस्टिस मिश्रा के खिलाफ खुलेआम बगावत का बिगुल बजा दिया था. चारों न्यायाधीशों ने प्रेस कांफ्रेंस में संवेदनशील मामलों के तरजीही आवंटन को लेकर अपनी चिंता जतायी थी.
29 नवम्बर को सेवानिवृत्त हो चुके जस्टिस जोसेफ ने कहा, 'तत्कालीन सीजेआई किसी 'बाहरी ताकत' के प्रभाव में काम कर रहे थे. वह किसी बाहरी ताकत द्वारा रिमोट से नियंत्रित थे. किसी बाहरी ताकत का कुछ प्रभाव था जो न्यायिक प्रशासन को प्रभावित कर रहा था.'
यह पूछे जाने पर कि वह यह दावा किस आधार पर कर रहे हैं, जस्टिस जोसेफ ने कहा कि उन न्यायाधीशों की ऐसी धारणा थी जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उत्पन्न मुद्दों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस किया था. ऐसी ही धारणा अदालत के कुछ अन्य न्यायाधीशों के बीच भी थी.
उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताने से इनकार कर दिया कि वह 'बाहरी ताकत' कौन थी और वे कौन से मामले थे जिसमें पक्षपात हुआ और न्यायिक प्रशासन प्रभावित हुआ.
यह पूछे जाने पर कि क्या कथित प्रभाव किसी राजनीतिक पार्टी या सरकार द्वारा किसी विशेष मामले में डाला गया, जस्टिस जोसेफ ने कहा कि न्यायाधीशों का विचार था कि संबंधित न्यायाधीश द्वारा कुछ पक्षपात किया गया था.
उन्होंने कहा कि किसी विशेष मामले का उल्लेख करने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, 'मुझे माफ करिये. मैं इसे आगे नहीं बढ़ाना चाहता.'
सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने यद्यपि कहा कि उस दबाव का असर हुआ और जस्टिस मिश्रा के सीजेआई के तौर पर बाकी के कार्यकाल के दौरान चीजें अच्छे के लिए बदलनी शुरू हो गई और वह जस्टिस गोगोई के नेतृत्व में जारी हैं. जस्टिस मिश्रा दो अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो गए.
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उन्होंने कहा कि अदालत के कामकाज की गुणवत्ता और संस्थान की स्वतंत्रता संबंधी धारणा में एक सुधार आया है. उन्होंने कहा कि प्रेस कांफ्रेंस से पहले चारों न्यायाधीशों ने जस्टिस मिश्रा से उनके ऊपर 'बाहरी ताकत' के कथित प्रभाव के बारे में बात की थी. उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों ने इसके साथ ही कुछ मामलों में पक्षपात के साथ निर्णय किये जाने का भी उल्लेख किया था.
जस्टिस जोसेफ ने कहा, 'निश्चित तौर पर हमारे पास उस समय जो भी तथ्य थे हमने उससे तत्कालीन सीजेआई को अवगत करा दिया था.' उन्होंने एक निजी टेलीविजन चैनल से कहा कि पूर्व सीजेआई स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं कर रहे थे. उन्होंने कहा, 'हम इसको लेकर आश्वस्त हैं कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश निर्णय स्वयं नहीं कर रहे थे.'
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न्यायाधीश बी एच लोया मामले के बारे में पूछे जाने पर जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वह अब उस पर टिप्पणी नहीं कर सकते, वह मामला अब बंद हो चुका है.
यह पूछे जाने पर कि जस्टिस मिश्रा को रिमोट कंट्रोल से कौन नियंत्रित कर रहा था, जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वे 'किसी पर उंगली रखकर नहीं बता सकते कि इसके पीछे कौन था.' उन्होंने कहा कि प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भी एक उदाहरण का उल्लेख किया गया, वह था उच्चतम न्यायालय में मामलों का आवंटन.
उन्होंने कहा कि न्यायाधीश लोया की मृत्यु की फिर से जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं का आवंटन प्रेस कांफ्रेंस के आयोजन का एकमात्र कारण नहीं था, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है.
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जज लोया सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे. एक दिसम्बर 2014 को कथित रूप से दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी. उस समय वह अपने एक सहयोगी की पुत्री के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए गए थे.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष अमित शाह गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री के नाते इस मामले के आरोपियों में शामिल थे. हालांकि बाद में एक निचली अदालत ने शाह को मामले में बरी कर दिया था.
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Source : PTI