जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस प्रदीप नंदराजोग की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति न होने को लेकर उठे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा है कि वो इस बात से निराश है कि 12 दिसंबर को लिए गए कॉलेजियम के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट वेबसाइट पर नहीं डाला गया. जस्टिस लोकुर ने एक संस्था द्वारा कॉन्सटीयूशनल क्लब में आयोजित कार्यक्रम में पत्रकार राजदीप सरदेसाई के सवालों के जवाब में ये कहा.
उन्होंने कहा कि उन्हे इस बात की जानकारी नहीं कि आखिर ऐसा क्या 'एडिशनल मटेरियल' सामने आया, जिसके चलते दिसंबर में लिए गए कॉलिजियम के फैसले को बदलना पड़ा. उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति वाले कॉलिजियम सिस्टम में कुछ खामियों को दुरुस्त किया जा सकता है, लेकिन ये कहना कि ये सिस्टम फेल हो गया है, सही नहीं होगा.
जस्टिस लोकुर ने स्पष्ट किया कि अगर चीफ जस्टिस किसी जज की नियुक्ति/ ट्रांसफर को लेकर कोई बात रखते है तो कॉलिजियम में बकायदा उस पर चर्चा होती है. कॉलेजियम के बाकी जज उस पर यूं ही मंजूरी नहीं दे देते. इसके अलावा जस्टिस लोकुर ने कॉलजियम की सिफारिशों में परिवारवाद की सम्भावना से इंकार करते हुए कहा कि मेरे अनुभव में ऐसा नहीं रहा है.
जस्टिस लोकुर ने कहा कि पिछले साल हुई चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद हमने कुछ हद तक पारदर्शिता को हासिल किया है. हम चीफ जस्टिस से कई बार अपनी असहमति को रख चुके थे. प्रधानमंत्री के साथ डिनर को लेकर पूछे गए सवाल पर जस्टिस लोकुर ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ ग़लत है, आप इसमे कुछ ज़्यादा ही पढ़ रहे हैं. उस कार्यक्रम में दूसरे देशों के चीफ जस्टिस भी शामिल थे.
पोस्ट रिटायरमेंट जॉब के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए भी देखना होगा, मसलन नियमों के मुताबिक NHRC का चीफ सुप्रीम कोर्ट जज ही बन सकता है. अगर सारे जज ही रिटायरमेंट के बाद काम लेने से इंकार कर देंगे तो फिर ये पोस्ट तो खाली रह जायेगी. हालांकि जस्टिस लोकुर ने साफ किया कि वो कोई पद नहीं लेंगे.
जस्टिस लोकुर ने कहा कि जिस फैसले से उन्हे सबसे ज़्यादा संतुष्टि मिली, वो था वृंदावन में विधवाओं को लेकर दिया फैसला.
Source : Arvind Singh