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आपदा प्रबंधन से लेकर सीमाओं की सुरक्षा पर प्रयोग होने वाली तकनीक काफी कारगर, जानें क्या है ये

जिस तरीके से अमेरिका में 911 एक आपातकालीन नंबर है, जिसमें न सिर्फ आपदा, बल्कि आग लगने, पुलिस सहायता, यहां तक कि मेडिकल इमरजेंसी की मदद पहुंच जाती है.

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Deepak Pandey
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आपदा प्रबंधन से लेकर सीमा सुरक्षा पर प्रयोग होने वाली तकनीक ( Photo Credit : File Photo)

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जिस तरीके से अमेरिका में 911 एक आपातकालीन नंबर है, जिसमें न सिर्फ आपदा, बल्कि आग लगने, पुलिस सहायता, यहां तक कि मेडिकल इमरजेंसी की मदद पहुंच जाती है. उसी तर्ज पर अब भारत सरकार ने सभी आपातकालीन नंबर जिसमें वरिष्ठ नागरिक, महिला सुरक्षा, आग लगना, प्राकृतिक आपदा और एंबुलेंस सेवाएं शामिल है, उसके लिए एक ही नंबर 112 करने की पहल की है. डेमो में बताते हैं कि किस तरीके से एक नंबर से विभिन्न सेवाओं के सर्वर नंबर को भेजा जाएगा, किसी एक व्यक्ति के सिर्फ फोन करने से उसकी जियो लोकेशन का पता लगाया जा सकता है और कैसे पहले चरण में एंबुलेंस और पुलिस सुविधाओं को इससे जोड़ा गया है, जबकि दूसरे चरण में ड्रोन डिलीवरी सिस्टम और सेटेलाइट को भी इसके साथ जोड़ दिया जाएगा.

जिस तरीके से भारतीय स्तर पर एनडीआरएफ काम करता है, उसी तरीके से योगी सरकार ने अत्याधुनिक तकनीक से एसडीआरएफ को तैयार किया है. उत्तर प्रदेश में नदियों के किनारे धार्मिक उत्सव होते हैं, जिसमें कुंभ के मेले से लेकर माघ मेला शामिल है. ऐसे में अगर कोई श्रद्धालु या एडवेंचर टूरिज्म करने वाला व्यक्ति नदी की ऐसी धारा में फंस जाए, जहां किसी बचाव कर्मी को भेजना सुरक्षित नहीं हो तो यह पानी की सतह पर चलने वाला ड्रोन काम में लाया जा सकता है. यह 6 किलोमीटर दूरी तक रिमोट कंट्रोल से संचालित किया जा सकता है, जबकि 300 मीटर की परिधि में इसका एक साथ दो व्यक्तियों की जान बचाने के लिए प्रयोग में लिया जा सकता है.

आग लगने के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें ज्वलनशील बारूद और रसायन से लेकर बिजली की तारों की वजह से आग लगना शामिल है. कई बार तो इस तरह की आग लगती है, जिसमें अगर पानी का छिड़काव किया जाए तो उससे करंट लगने का खतरा होता है. ऐसे में काम आती है 5 किलो की बोल. इस गेंद को आप आग लगने वाले स्थान पर फेंक सकते हैं और जैसे ही तापमान 70 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होगा यह अपने आप फट जाएगा और आसपास के पूरे सतह की आग अपने आप बुझ जाएगी.

अमेरिका की तकनीक से बना 14 सैटेलाइट का एक समूह है, जो बेहद कारगर तरीके से किसी भी एक स्थान की हर घंटे तक तस्वीर लेकर यह बता सकता है कि उस स्थान में कितना परिवर्तन आया है. यह बताने की कोशिश की जा रही है कि कैसे तिब्बत में मौजूद चाइना के एयरपोर्ट बेसिक हवाई जहाज उड़ान भर रहे हैं या उनकी संख्या कम ज्यादा हो रही है.

गूगल मैप से कई गुना ज्यादा बारीकी से यहां सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं और बदलाव को भी अंकित किया जा सकता है. 9 दिसंबर 2022 में जिस तवांग के बुमला के पास भारत और चीन की सेना के बीच झड़प हुई थी, उसे दिखाया गया है, जबकि सेटेलाइट के जरिए हर घंटे तस्वीर कैसे ली जाती है और कैसे एक जगह की स्थिति में परिवर्तन को अंकित किया जाता है यह दिखाने के लिए नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के काम को सैटेलाइट से मैपिंग करके दिखाया गया है. इस तकनीक का प्रयोग भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन दोनों ही सीमाओं पर किया जा सकता है.

बीते 9 सालों में भारत और चीन के बीच सीमा में अलग-अलग स्थानों पर झड़प सामने आई है. ऐसे में भारत की स्वदेशी निजी कंपनियां ऐसी तकनीक बना रही हैं, जो भारतीय सशस्त्र बलों के लिए चीन की सीमा पर मददगार साबित हो सकती है.

इस लाइट को छोटे से ब्रीफकेस में पोर्टेबल तरीके से पैक किया जा सकता है, जिसके बाद इसका वजन सिर्फ 6 किलो है, जो कोई भी फौजी अपने साथ आसानी से ले जा सकता है. पूर्वोत्तर भारत में खास तौर पर चीन से लगने वाली सीमा पर जब सेना के तरफ से long-range पेट्रोलिंग की जाती है, तब इस छोटी सी लाइट के जरिए एक फुटबॉल के मैदान जितने इलाके को रोशन किया जा सकता है.

जब भारत चीन की सीमा पर फॉरवर्ड ऑपरेशन बेस बनाना हो या सैनिकों को बहुत जल्दी से रात के समय तैनात करना हो, तब इस 40 किलो की लाइट का प्रयोग किया जा सकता है. इसमें से एक लाइट ही पूरी कंपनी के फॉरवर्ड बेस को स्थापित करने के लिए काफी है, जो हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर से या फिर 2 से 3 सैनिकों की मदद से आसानी से पहाड़ी क्षेत्रों में पहुंचाई जा सकती है.

इस तकनीक को अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के द्वारा नाटो फोर्स के लिए बनाया गया था, जिसका प्रयोग मौजूदा समय में यूक्रेन युद्ध में भी किया जा रहा है और एक निजी भारतीय कंपनी ने इसी तकनीक के साथ ज्वाइंट वेंचर किया है.

यह एक तरह का रडार है, जो डेढ़ सौ फुट दूर किसी भी शत्रु का पता लगाने में सक्षम है. यानी अगर आतंकवादी कई कमरों के पीछे भी छुपे हुए हैं तो भी आतंक निरोधक ऑपरेशन में सशस्त्र बल आसानी से उनकी हर मूवमेंट का पता लगा सकते हैं. डीआरडीओ की तरफ से ना सिर्फ भारत के डिफेंस के लिए उपकरण बनाए जाते हैं, बल्कि इसके कई उपकरण आपदा प्रबंधन में काम आने के लिए भी उपयुक्त है.

इस छोटी सी बॉक्स को BMP/Tank पर आसानी से फिट किया जा सकता है और अगर आसपास कोई भी केमिकल वेपन का इस्तेमाल किया गया हो या नागरिक क्षेत्र में आपदा के समय किसी रासायनिक गैस का रिसाव हो तो आसानी से पता लगाया जा सकता है. इसके छोटे रूप का उपयोग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की सुरक्षा के आंतरिक घेरे में भी किया जाता है.

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पूर्वोत्तर भारत की कई नदियां तिब्बत के पठार से आती हैं, जो चीन के नियंत्रण में है. ऐसे में इस बात का खतरा रहता है कि चीन अपने बांध में किसी ऐसे केमिकल को ना मिला दे जिससे इन नदियों का पानी जहरीला और दूषित हो जाए. ऐसी किसी भी स्थिति का चंद मिनटों में पता लगाने के लिए डीआरडीओ ने बायोलॉजिकल और केमिकल वाटर डिटेक्शन किट का निर्माण किया.

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